सियासत
कांग्रेस भोपाल में लगातार अपने विधायकों , सांसदों और अन्य नेताओं से चर्चा कर संगठन को मजबूत करने के लिए प्रयास कर रही है। लेकिन पीसीसी की जो स्थिति है, उसको देखते हुए ऐसा लगता है कि प्रदेश में कांग्रेस की वापसी आसान नहीं होगी। कांग्रेस के पास प्रदेश में रिवाइवल का कोई प्लान नहीं है। केवल बयान बाजी और हवा में लठ्ठ बाजी करने से प्रदेश में भाजपा और संघ परिवार का मुकाबला नहीं किया जा सकता। संगठन को मजबूत किए बिना प्रदेश में कांग्रेस की वापसी आसान नहीं होगी । लोकसभा चुनाव का विश्लेषण करें तो प्रदेश में कांग्रेस केवल ग्वालियर चंबल अंचल की भिंड मुरैना और ग्वालियर सीट पर ही थोड़ी बहुत टक्कर देती नजर आई।
इसके अलावा अपने मजबूत प्रत्याशियों के बल पर कांग्रेस ने सतना और मंडला में भी अच्छा मुकाबला किया लेकिन शेष अधिकांश सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी ही नहीं। प्रदेश की 29 में से 13 सीटें ऐसी रहीं जहां हार-जीत चार से 11.75 लाख मतों के अंतर से हुई। इसमें इंदौर, विदिशा, बैतूल, मंदसौर, देवास, भोपाल, देवास, गुना, सागर, टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, जबलपुर शामिल हैं। हाट सीट छिंदवाड़ा से कांग्रेस के नकुल नाथ को भाजपा के विवेक बंटी साहू ने 1,13,618 मतों के अंतर से पराजित किया। सबसे कम मतों के अंतर से हार-जीत मुरैना लोकसभा क्षेत्र में हुई।
यहां भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर ने कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार को पराजित किया। यहां हार-जीत का अंतर 52,530 मतों का रहा। इसी तरह सतना लोकसभा सीट से भाजपा के गणेश सिंह ने कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा को 84,949 मतों से हराया। लोकसभा चुनाव की पराजय का ठीकरा जीतू पटवारी के सर फोड़ा जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को सूबे के लगभग सभी बड़े नेता असहयोग कर रहे हैं। इनमें अजय सिंह, अरुण यादव, लक्ष्मण सिंह, विवेक तंखा, उमंग सिंघार जैसे नेताओं ने तो बाकायदा बयान बाजी की है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने भी जीतू पटवारी के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया है। कुल मिलाकर पार्टी में घमासान मचा हुआ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार अपने पदों को बचाने में सारी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। इनके पास कांग्रेस के रिवाइवल का कोई एक्शन प्लान नहीं है। पूरी पार्टी बयान बाजी और सोशल मीडिया पर नजर आती है।