केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को केंद्रीय बजट प्रस्तुत करने वाली हैं. इस बजट में सबसे अधिक जोर रोजगार बढ़ाने पर होना चाहिए. इस समय युवाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार के अवसर नहीं होना है. दरअसल,देश में रोजग़ार की स्थिति बहुत गम्भीर है,असंगठित क्षेत्र में पर्याप्त रोजग़ार नहीं है. इस तथ्य को भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा 2021-22 और 2022-23 के लिए असंगठित क्षेत्र के उपक्रमों के वार्षिक सर्वेक्षण में भी स्वीकार किया गया है. हाल ही में प्रकाशित तथ्य रिपोर्ट देश में रोजगार की स्थिति का गंभीर चित्र प्रस्तुत करती है. महामारी के बाद मजबूती दिखाने के बावजूद असंगठित क्षेत्र पर्याप्त रोजगार नहीं तैयार कर सका. इस क्षेत्र में छोटे कारोबार और विनिर्माण, सेवा तथा व्यापार क्षेत्र के एकल उपक्रम शामिल हैं तथा यह अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र को दर्शाता है. इस क्षेत्र के कर्मचारियों और उपक्रमों को आमतौर पर औपचारिक पहचान नहीं मिलती और अक्सर वे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से भी बाहर होते हैं.यह क्षेत्र रोजगार निर्माण और मूल्य श्रृंखलाओं में अहम भूमिका निभाता है.तथ्य रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि अप्रैल 2021 से मार्च 2022 और अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच पंजीकृत प्रतिष्ठानों और कामगारों की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर क्रमश: 5.88 प्रतिशत और 7.83 प्रतिशत रही.
आँकड़े कहते हैं – जुलाई 2015 से जून 2016 के बीच 73 वें दौर के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के नतीजों से तुलना की जाए तो उद्यमों की संख्या बढऩे के बावजूद असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में 1.6 लाख की कमी आई. इससे असंगठित क्षेत्र की रोजगार तैयार करने की क्षमता के बारे में प्रश्नचिह्न लगते हैं. इसकी दो वजह हो सकती हैं.पहली, असंगठित क्षेत्र के कई उपक्रम अपनी सीमित उत्पादन क्षमता के कारण बहुत छोटे हैं या फिर मांग में कमी है. दूसरा, संभव है कि उत्पादन तकनीक और मशीनरी में सुधार की बदौलत वे और अधिक पूंजी आधारित हो गए हों. इसकी वास्तविक वजह अस्पष्ट है लेकिन दोनों परिदृश्यों में रोजगार में कमी आती है. यह क्षेत्र बीते दशक के दौरान कई तरह के झटकों से भी प्रभावित रहा. इसमें नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर का लागू होना और कोविड से संबंधित उथलपुथल शामिल रही.सांख्यिकी संबंधी स्थायी समिति के मुताबिक सालाना करीब 20 लाख नए असंगठित उपक्रम जुड़ते हैं.इनमें से प्रत्येक में औसतन 2.5-3 लोग काम करते हैं. बहरहाल, जैसा कि आंकड़े दर्शाते हैं उसके मुताबिक भी इस अवधि के दौरान लगभग एक करोड़ से अधिक उपक्रम तथा 2.5-3 करोड़ रोजगार खत्म भी हुए होंगे.
सर्वेक्षण को लेकर विस्तृत रिपोर्ट आने पर इस क्षेत्र के घटनाक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी लेकिन तथ्य पत्र अर्थव्यवस्था की ढांचागत कमजोरी को सामने लाता है. जैसा कि सावधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण से संकेत मिलता है नियमित वेतन वाले कर्मचारियों की संख्या में भी सुधार नहीं हो रहा है.असंगठित क्षेत्र के आंकड़े बताते हैं कि यह भी पर्याप्त रोजगार नहीं तैयार कर पा रहा है.
कृषि रोजगार में हालिया इजाफा भी यही दिखाता है. यह देखते हुए कि असंगठित क्षेत्र में उपक्रमों की स्थापना में कमी आई है और मूल्य वर्द्धन में मामूली वृद्धि हुई है, ऐसे में शंका करने वाले यह प्रश्न उठा सकते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद के अनुमान संगठित क्षेत्र के आंकड़ों पर ही निर्भर हैं.असंगठित क्षेत्र के उपक्रमों का ताजा सर्वेक्षण एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि देश में रोजगार की स्थिति कैसी है. चूंकि देश में युवा आबादी सबसे अधिक है और हमारी श्रम शक्ति आने वाले वर्षों में बढ़ती रहेगी, सार्थक रोजगार तैयार करना हमारी सबसे प्रमुख नीतिगत चुनौती है.ऐसे में नई सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह ऐसे नीतिगत हस्तक्षेप करे ताकि कृषि क्षेत्र से परे रोजगार तैयार हो सकें.बिना रोजगार के अवसर बढ़ाए, भारत के लिए मध्यम से लंबी अवधि में वृद्धि को बरकरार रखना मुश्किल हो जाएगा.