शिमला, 02 जुलाई (वार्ता) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक फैसला सुनाते हुए कहा था कि बिना किसी धमकी या बल के सोशल मीडिया पर केवल विरोध या टिप्पणी करना भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत अपने सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में लोक सेवक की बाधा उत्पन्न नहीं करता है।
अदालत ने अपने फैसले के समर्थन में सुरिंदर सिंह चौहान बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य सहित पिछले फैसलों का हवाला दिया।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि किसी भी शारीरिक हस्तक्षेप या धमकी के बिना निष्क्रिय आचरण या मौखिक विरोध, लोक सेवक की स्वैच्छिक बाधा नहीं है।
इस व्याख्या का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लोक सेवकों की क्षमता को बनाए रखते हुए विरोध करने के अधिकार में अनुचित रूप से कटौती न हो।
इस फैसले ने सीता राम शर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 186 के तहत आरोपों को रद्द कर दिया और उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया।
अदालत ने कहा कि बाधा के आरोप का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी को देखते हुए मुकदमे को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
हाल ही में सीता राम शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में फैसला सुनाते हुए, न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की पीठ ने कहा कि धारा 186 आईपीसी के तहत अपराध के लिए आवश्यक तत्व पूरे नहीं थे।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई शारीरिक बाधा या प्रत्यक्ष कार्य नहीं किया गया जो पुलिस अधिकारी को बाधित करता हो। यह निर्णय आईपीसी की धारा 186 के दायरे को स्पष्ट करता है, जिसमें कहा गया है कि शारीरिक बाधा के बिना केवल मौखिक विरोध इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है।
इस मामले में याचिकाकर्ता सीता राम शर्मा शामिल हैं, जिन पर एक पुलिस अधिकारी को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालने के लिए आईपीसी की धारा 186 के तहत आरोपी बनाया गया था।
यह घटना तब हुई जब शर्मा को सीट बेल्ट नहीं पहनने के लिए रोका गया और बाद में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 177 और 179 के तहत चुनौती दी गई।
बातचीत के दौरान शर्मा फेसबुक पर लाइव आए और कुछ टिप्पणियां कीं, जिसके कारण बाधा डालने का आरोप लगाया गया।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की कार्रवाई, जिसमें फेसबुक पर लाइव आना और टिप्पणी करना शामिल है, बाधा डालने के समान है।
उन्होंने दावा किया कि इस तरह के व्यवहार से पुलिस अधिकारी की ड्यूटी बाधित हुई और इसलिए यह आईपीसी की धारा 186 के दायरे में आता है।
हालांकि, शर्मा के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की कार्रवाई एक निष्क्रिय आचरण है जो पुलिस अधिकारी की अपनी ड्यूटी करने में हस्तक्षेप नहीं करती है।