सियासत
प्रदेश में जब से सत्ता परिवर्तन हुआ है सांसद शंकर लालवानी की मुखरता एकदम कम हो गई है. वो अधिकांश समय खामोश रहने की कोशिश करते हैं. कई बार मंच पर भी उनको गुमसुम देखा गया है. खास तौर से 29 अप्रैल को हुए घटनाक्रम के बाद ऐसा लगता है शंकर लालवानी अपनी खामोशी के जरिए नाराजगी व्यक्त करना चाहते हों. अक्षय कांति बम के घटनाक्रम पर उनका आज तक कोई बयान नहीं आया है. उन्होंने इस मामले में कभी कुछ नहीं कहा.
न कांग्रेस पर प्रहार किया और न ही भाजपा का बचाव किया. अक्षय कांति बम से उन्होंने चुनाव के दौरान भी अलग से मिलने की कोशिश नहीं की. खास तौर पर उस मंच पर उनकी खामोशी और बेचैनी साफ देखी जा सकती है जिस मंच पर कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय बैठे हों. दरअसल, शिवराज सिंह चौहान के भरोसे राजनीति करने वाले शंकर लालवानी डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री और कैलाश विजयवर्गीय के कैबिनेट मंत्री बनने के बाद बिल्कुल भी लय में नहीं हैं.
ऐसा नहीं है कि खामोशी उनकी तासीर हो. उन्हें रमेश मेंदोला या कृष्ण मुरारी मोघे की तरह कम बोलने वाला नेता नहीं माना जाता है. एक समय तो वो काफी वाचाल थे, लेकिन बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में ऐसा लगता है कि उनकी बोलती बंद हो गई है. हालांकि जन समस्याओं के मामले में उनकी सक्रियता में कमी नहीं आई है. न हीं उनका जनता से व्यवहार बदला है, लेकिन ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं वो इंदौर भाजपा की फंक्शनिंग से खुश नहीं हैं. जाहिर है कभी न कभी उनकी खामोशी किसी दिन राजनीतिक विस्फोट को जन्म देगी ? वैसे शिवराज सिंह चौहान को जिस तरह से राष्ट्रीय राजनीति में महत्व दिया जा रहा है, उसके बाद यह तय है कि शंकर लालवानी एक बार फिर अपनी पुरानी लय में जल्दी ही दिखेंगे!