सरकारी जमीन के सौदागरों की ताल पर नाच रहा प्रशासन

40 बीघा शासकीय जमीन पर कब्जा कर बेच रहे, मुआवजा लेने की भी कोशिश

 

सुसनेर, 7 जून. नगरीय क्षेत्र में इंदौर-कोटा राजमार्ग की बेशकीमती सरकारी जमीन जिस तरह से कब्जा करके बेची जा रही है और लगातार खुलासे के बाद भी प्रशासन ने जिस तरह से चुप्पी साध रखी है, उससे लगता है कि प्रशासन जमीन के सौदागरों की ताल पर नाच रहा है या अपने निजी फायदे के लिए काम कर रहा है और वेतन सरकार से ले रहा है.

ऐसा ही एक मामला परसुलिया रोड और मोड़ी रोड के बीच के शासकीय सर्वे नंबर 2007 का है. इससे जुड़े दो अन्य नंबर 1995 और 1998 भी हैं. ये भी सरकारी हैं. इन सब सर्वे नंबर की करीब 40 से 50 बीघा जमीन पर धीरे-धीरे कब्जा करके प्लॉट काटे जाकर बेचे जा रहे हैं. नगर के बीच होने की वजह से इनकी कीमत करोड़ों में है. बिजली ग्रिड के समीप इन सर्वे नंबर से होकर जीरापुर से डग तक की सडक़ का निर्माण किया जा रहा है. इन सर्वे नंबर पर कब्जा करके उसे बेचने वाले अब इस सडक़ निर्माण में शासकीय जमीन का मुआवजा पाने की कोशिश कुछ शासकीय कर्मचारियों को अपने साथ लेकर कर रहे हैंं. इनमे तहसील का एक अधिकारी भी शामिल है.

जिम्मेदार झाड़ रहे पल्ला…

नगरीय क्षेत्र की जमीन है, इससे राजस्व का कोई लेना-देना नहीं. यह कहकर जिम्मेदार अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, जबकि यह राजस्व की भूमि होकर चरनोई भूमि के तौर पर रिकॉर्ड मे दर्ज है, तो फिर राजस्व विभाग क्यों मौन है. तीन साल में राजस्व के कुछ लोगों ने करोड़ों की संपत्ति बनाई है, जो नौकरी लगने के समय गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते थे, वे करोड़ों में खेलने लगे हैं. उन्होंने अपने परिजनों के नाम कुछ बेशकीमती प्लॉट भी सरकारी जमीन देने की आड़ में जमीन के जादूगरों से निशुल्क हासिल किए हैं और इसके लिए अनुमति अपने वरिष्ठ अधिकारियों से नहीं ली है. जिम्मेदार इंदौर-कोटा राजमार्ग की किसी भी एक कॉलोनी का सीमांकन कर ले, तो सारी सच्चाई सामने आ सकती है.

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