नर्मदा लाइन फिर फूटी,टैंकरों के हवाले शहर

खंडवा: सहनशील खंडवावालों,नर्मदाजल की पाइपलाइन फिर फूट गई है। सप्ताहभर लाइन जुडऩे के बाद शनिवार जोड़ी गई थी। रविवार कुछ इलाकों में जल वितरण के बाद रविवार दोपहर चारखेड़ा के पास ज्यादा जल दबाव के कारण लाइन फिर फूट गई। चौबीस घंटे भी नहीं चली। राईं में फाल्ट मुश्किल से जुड़ा और बेकवाटर जहां से आता है, उसी चारखेड़ा में लाइन फिर टें बोल गई।प्रेशर इतना अधिक था कि 45.5 डिग्री तापमान में यहां का फव्वारा मनोरम लग रहा था। हजारों गैलन पानी रिसाव का वेग नापा गया। इस दृश्य की कीमत खंडवा के वे ही लोग जानते हैं,जो सवा रूपए लीटर पानी खरीदकर पी रहे हैं।
रोड जाम किया फिर मिला पानी
नीलकंठेश्वर वार्ड में इंदिरा चौक पर तो लोगों ने पानी की समस्या को लेकर रोड जाम कर दिया। नगर निगम उपायुक्त, खंडवा एसडीएम ने मौके पर पहुंचकर समझाया। आश्वासन के बाद लोगों ने रोड से वाहनों को जाने दिया। इसके बाद नगर निगम के अधिकारियों ने पार्षद ज्योति कन्हैय्या कन्नू वर्मा ने टैंकरों से जल वितरण करवाया।
तामृपत्र विश्वा को किसने दिया?
200 करोड़ की योजना के बाद 120 करोड़ की राशी शहर में निगम पाइप लाइन डाल रही है। फिर भी विश्वा कंपनी पर किस हैसियत से जनता का पैसा लुटाया जा रहा है? पुराने लोग अंग्रेजों की तरह तामृपत्र जैसे स्टाम्प पर एग्रीमेंट कर गए हैं। यह पैसा नगर निगम द्वारा कंपनी को देना पड़ेगा। फाइबर के पाइप बिना बेस लगे हैं। नरवाई जैसी आग से ही पाइप पिघल जाते हैं, वे पानी की 8 बड़ी मोटरों का वेग कै से सहन कर पाएंगे?
200 करोड़ कौन खा गया?
लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब पानी की शहर को सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब ही पाइप लाइन क्यों फटती है? एक जगह से जोडऩे के बाद दूसरी जगह से फूट जाती है? यह तकलीफ दस साल से 200 करोड़ खर्च करने के बाद भी शहर भुगत रहा है। आयरन के पाइप बदलकर बिना बेस के ओएफसी के क्यों डाले गए? जब योजना फेल हो गई,तो जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कोई सरकारी बाबू भंडार से दस-बीस हजार का भंगार बेच देता है, तो उस पर एफआईआर के लिए जिम्मेदार और अफसर फडफ़ड़ाने लगते हैं। यहां दोहरा चरित्र सरकार का क्यों?
लोग खुद बोले,टैंकर लगाओ
बड़ी बात तो यह है कि तीसरे दिन पानी के बावजूद 200 रुपए महीना जलकर देना पड़ रहा है? विश्वा कंपनी को 18 लाख रुपए दिया जा रहा है। यह खैरात भी एग्रीमेंट के तहत दी जा रही है। कई लोग तो शक कर रहे हैं कि टैंकरों से जलवितरण और उन पर मोटा बजट खपाने के लिए संकट पैदा किया जा रहा है। लोगों की मजबूरी है कि वे खुद पानी के टैंकरों की मांग करने लगे हैं।

पार्षदों की ज्यादा आफत

नेताओं और ठेकेदारों के टैंकर शहर में निगम की तरफ से जल वितरण पार्षदों की चिट्ठी पर कर रहे हैं। आम लोगों से ज्यादा परेशान पार्षद दिख रहे हैं। अपने क्षेत्र में पानी का टैंकर ले जाने के लिए वे पसीना बहा रहे हैं। इसके बावजूद लोग पानी न मिलने के बदले अपशब्दों की बौछार भी कर रहे हैं

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