भारत की मेजबानी में होगी अंटार्कटिका पर पर्यटन विकास के विषय में चर्चा

नयी दिल्ली, (वार्ता) पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि भारत 46वीं अंटार्कटिक (दक्षिणी घ्रुव प्रदेश) संधि परामर्शदात्री बैठक (एटीसीएम) और पर्यावरण संरक्षण समिति (सीईपी) की 26वीं बैठक की कोच्ची में मेजबानीद कर रहा है।

इस सम्मेलन में पहली बार अंटार्कटिका में पर्यटन को विनियमित करने पर पहली बार विशेष रूप से चर्चा होगी।

मंत्रालय की मंगलवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार आज इस सम्मेलन में पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने भाग लिया।
इस सम्मेलन की बैठकें 20 मई से चुल रही है और सम्मेलन 30 मई तक चलेगा।

विज्ञप्ति के अनुसार राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा और अंटार्कटिक संधि सचिवालय इन बैठकों का आयोजन कर रहे हैं।
इसमें लगभग 40 देशों के 350 से अधिक प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं।

भारत, अंटार्कटिक संधि प्रणाली का एक प्रतिबद्ध सदस्य होने के नाते, अंटार्कटिका में बढ़ती पर्यटन गतिविधियों और महाद्वीप के नाजुक पर्यावरण पर उनके प्रभाव से निपटने की तत्काल आवश्यकता महसूस करता है।

पिछले कुछ वर्षों में अंटार्कटिका आने वाले पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, पर्यटन एक प्रमुख मुद्दा बन गया है, जिससे यह महत्वपूर्ण हो गया है कि इस अनूठे और प्राचीन क्षेत्र में स्वस्थ व उत्तरदायित्वपूर्ण अनुसंधान सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नियम बनाए जाएं।

अंटार्कटिक को लेकर 1959 में एक बहु पक्षीय संधि हुई थी जिसमें 56 देश शामिल हैं।
इसके प्रावधानों के अनुसार ये दोनों उच्च स्तरीय वार्षिक बैठकें आयोजित की जाती हैं।

इन बैठकों में, अंटार्कटिक संधि के सदस्य देश अंटार्कटिका के विज्ञान, नीति, शासन, प्रबंधन, संरक्षण और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

सीईपी की स्थापना 1991 में अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल के तहत की गई थी।
सीईपी अंटार्कटिका में पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा पर एटीसीएम को सलाह देता है।

भारत 1983 से अंटार्कटिक संधि का सलाहकार पक्ष रहा है।
भारत अंटार्कटिका के वैज्ञानिक अन्वेषण और पर्यावरण संरक्षण को अन्य 28 सलाहकार पक्षों के साथ, संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संधि के तहत वहां अनुबंध करने वाले और सलाहकार पक्ष अंटार्कटिक संधि के अनुपालन, पर्यावरण प्रबंधन, वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और अंटार्कटिका को सैन्य गतिविधि और क्षेत्रीय दावों से मुक्त, शांति के क्षेत्र के रूप में बनाए रखने के लिए उत्तरदायी हैं।
एटीसीएम का प्रशासन अंटार्कटिक संधि सचिवालय के अर्जेंटीना मुख्यालय से किया जाता है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख डॉ. एम. रविचंद्रन ने बैठक के एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा, “अंटार्कटिका जंगल और वैज्ञानिक खोज की अंतिम सीमाओं में से एक का प्रतिनिधित्व करता है।

इस असाधारण क्षेत्र के प्रबंधकों के रूप में, यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस क्षेत्र में अनुसंधान और पर्यटन सहित सभी गतिविधियां इस तरीके से संचालित की जाएं जिससे भावी पीढ़ियों के लिए इसकी पारिस्थितिक अच्छीतरह सुरक्षित रहे।

उन्होंने आगे बताया कि भारत ने एहतियाती सिद्धांतों पर आधारित एक व्यापक, सक्रिय और प्रभावी पर्यटन नीति की वकालत की है।
1966 से एटीसीएम में पर्यटन को विनियमित करने पर चर्चा चल रही है, लेकिन ये एजेंडा आइटम, सत्र, कागजात या संकल्प तक ही सीमित रहे हैं।
भारत द्वारा आयोजित 46वें एटीसीएम में पहली बार अंटार्कटिका में पर्यटन को विनियमित करने के लिए एक समर्पित कार्य समूह तैयार किया गया है ।

एनसीपीओआर के निदेशक डॉ. थंबन मेलोथ ने बताया कि भारत के पास 2022 में लागू भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम के द्वारा अंटार्कटिका में पर्यटन सहित भारत की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचा है।

उन्होंने कहा, “भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम भारत के पर्यटन नियमों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ समन्वित करता है और सामान्य संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अन्य अंटार्कटिक संधि देशों के साथ सहयोग करता है।
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एमओईएस के सलाहकार और मेजबान देश सचिवालय के प्रमुख डॉ. विजय कुमार ने कहा, “पिछले चार दशकों में, भारत ने अंटार्कटिक अनुसंधान, पर्यावरण प्रबंधन और अंटार्कटिक संधि के ढांचे के भीतर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में खुद को स्थापित किया है।

भारत अंटार्कटिक संधि प्रणाली में सलाहकार पक्षों के रूप में कनाडा और बेलारूस को शामिल करने की संभावना पर चर्चा करने के लिए एक मंच भी प्रदान करेगा।
कनाडा और बेलारूस क्रमशः 1988 और 2006 से अंटार्कटिक संधि प्रणाली पर हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं।

46वें एटीसीएम और 26वें सीईपी के अध्यक्ष राजदूत पंकज सरन ने कहा, “अंटार्कटिका संधि प्रणाली में देशों के सहयोगात्मक प्रयास, प्राचीन पर्यावरण को संरक्षित करने और अंटार्कटिका में वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण हैं।

अपने नेतृत्व और प्रतिबद्धता के माध्यम से, भारत अंटार्कटिक शासन के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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