चैरिटी के काम में सक्रिय रहीं, 24 धर्मार्थ ट्रस्टों की अध्यक्ष थीं

माधव राव सिंधिया के निधन के बाद राजमाता माधवी राजे सिंधिया ग्वालियर न के बराबर ही आती थीं। सिंधिया स्कूल और फाउंडेशन के कुछ कार्यक्रमों में कभी-कभी दिखती थीं। साथ ही पारिवारिक समारोहों में भी राजमाता माधवी राजे सिंधिया दिखती थीं। माधवी राजे चैरिटी के काम में काफी सक्रिय रहती थीं। वह 24 धर्मार्थ ट्रस्टों की अध्यक्ष थीं। जो शिक्षा और चिकित्सा देखभाल जैसे क्षेत्रों में सहायता देते हैं। वह सिंधिया कन्या विद्यालय के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की अध्यक्ष भी थीं। उन्होंने अपने दिवंगत पति माधवराव सिंधिया की याद में महल संग्रहालय में गैलरी भी बनाई।

 

माधव राव ने शादी से पहले देखने की इच्छा जाहिर की, लेकिन संभव नहीं हुआ

 

राजकुमारी किरण राज लक्ष्मी देवी की शादी का प्रस्ताव सिंधिया राजघराने में आया। उस वक्त तक तस्वीरों का चलन शुरू हो चुका था। ऐसे में नेपाल की इस राजकुमारी की तस्वीर उस वक्त ग्वालियर के महाराज रहे माधवराव सिंधिया को दिखाई गई। तस्वीर देखते ही माधवराव को किरण पसंद आ गईं। बताया जाता है तस्वीर देखने के बाद माधव राव ने सामने से उन्हें देखने की इच्छा जाहिर की, वह संभव न हो सका, लेकिन यह रिश्ता पक्का हो गया।

बारात के लिए ग्वालियर से दिल्ली स्पेशल ट्रेन चलाई गई थी

1966 में माधवराव सिंधिया के साथ राजमाता माधवी राजे सिंधिया का विवाह हुआ था। उस दौरान तय हुआ की विवाह दिल्ली से सम्पन्न होगा। ऐसे में बारात ले जाने के लिए विशेष इंतजाम किए गए। ग्वालियर से दिल्ली के बीच विशेष ट्रेन चलाई गई, जिससे माधवराव अपनी बारात लेकर गए थे। 8 मई 1966 को परंपरागत रूप से शादी संपन्न हुई थी और किरण राज लक्ष्मी विवाह पश्चात सिंधिया घराने की बहू और सिंधिया राजवंश की रानी बनकर ग्वालियर आ गईं।

मराठी परंपरा के अनुसार बदला नाम

शादी दिल्ली में शानो-शौकत के साथ हुई थी। इस शाही शादी में देश-विदेश से मेहमान शामिल हुए थे। शादी के बाद मराठी परंपरा के अनुसार नेपाल की राजकुमारी का नाम बदला गया। इसके बाद वह किरण राजलक्ष्मी से माधवीराजे कहलाने लगीं। माधवी और माधवराव का रिश्ता ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तय किया था।

मां-बेटे के बीच में सेतु थीं माधवी राजे

माधव राव सिंधिया और उनकी माता विजयाराजे सिंधिया के बीच कई सालों तक संबंध ठीक नहीं थे। यहां तक कि एक बार राजमाता विजयाराजे ने माधवराव को उनके अंतिम संस्कार में शामिल न होने के लिए भी कहा था, पर साल 2001 में विजयाराजे के निधन पर माधवराव ने ही उनको मुखाग्नि दी थी। मां (विजयाराजे) और बेटे (माधवराव) के बीच माधवी राजे एक सेतु का काम करती थीं। वियजाराजे सिंधिया, बेटे माधवराव सिंधिया से चाहें जितनी भी नाराज हों मतभेद हों, लेकिन बहू और सास के बीच कभी कोई मतभेद नहीं पनपा।

राजनीति में नहीं आईं, बेटे के लिए छोड़ी विरासत

माधवराव सिंधिया के निधन के बाद माधवी राजे के राजनीति में आने के कयास भी लगते रहे। माना जा रहा था कि वह साल 2004 के आम लोकसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा से चुनाव लड़ सकती हैं। माना जा रहा था कि गुना से ज्योतिरादित्य और ग्वालियर से माधवी राजे मैदान में होंगी, क्योंकि उस समय माधवराव के आकस्मिक निधन से लोग भावुक थे, लेकिन माधवी राजे ने खुद को राजनीति से दूर ही रखा। साथ ही, पति माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए छोड़ दी।

माधवराव सिंधिया के निधन के बाद से वह काफी टूट गई थीं, लेकिन बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और बहू प्रियदर्शनी राजे सिंधिया की मार्गदर्शक रहीं। ज्योतिरादित्य हमेशा अपनी मां से सलाह मशविरा करके फैसला लेते रहे।

ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के फैसले में दिया था साथ

मार्च 2020 में जब सिंधिया राजघराने के मुखिया ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाने का निर्णय लिया था, तो उस समय पूरा परिवार उनके साथ था। बेटा और पत्नी तो उनके फैसले में साथ थे ही, पर सबसे ज्यादा सपोर्ट उनकी मां माधवी राजे सिंधिया ने किया था। ज्योतिरादित्य कांग्रेस में पिता की विरासत छोडक़र जाने में संकोच कर रहे थे, लेकिन माधवी राजे ने मार्गदर्शक बनकर राह दिखाई थी। इसके बाद ही ज्योतिरादित्य ने इतना बड़ा फैसला लेकर अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया की तरह बड़ा कदम उठाया था।

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