पूरे संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के पास नहीं है एक भी विधायक, सभी विधानसभा में भाजपा का कब्जा
शाजापुर, 15 मई. देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र चार जिले और आठ विधानसभा से मिलकर बना हुआ है. यूं तो ये संसदीय क्षेत्र जनसंघ के समय से ही गढ़ रहा है. कांग्रेस को केवल दो बार जीत का स्वाद मिला है. इस पूरे संसदीय क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण देवास विधानसभा मानी जाती है और देवास विधानसभा की लीड ही भाजपा की बढ़त का कारण रही है. लेकिन इस बार देवास विधानसभा से भाजपा की लीड 2019 के चुनाव की तुलना में कम होगी. इसका कारण देवास विधायक और सांसद के बीच राजनीतिक अदावत है.
गौरतलब है कि देवास, शाजापुर, आगर और सीहोर जिले की विधानसभाओं को मिलाकर देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र की रचना की गई है. इसमें बात करें तो 2009 में शाजापुर विधानसभा से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था और यही कारण है कि 2009 में भाजपा के थावरचंद गेहलोत चुनाव हारे थे. वहीं राजनीतिक विश्लेषकों की बात करें तो 2009 के चुनाव में देवास के महाराज से थावरचंद गेहलोत की राजनीतिक दूरियों का असर भी दिखाई दिया था. 2009 का चुनाव भाजपा हारी और कांग्रेस के सज्जनसिंह वर्मा मामूली अंतर से जीते थे. 2024 के लोकसभा चुनाव की बात करें, तो आठों विधानसभा में कांग्रेस के पास एक भी विधायक नहीं है और कांग्रेस के लिए ये भी बड़ी चुनौती रही है. अब देखना यह है कि 4 जून को 8 विधानसभा में सबसे ज्यादा किस विधानसभा से भाजपा को वोट मिलते हैं और किस विधानसभा से कांग्रेस को सबसे कम.
विधानसभावार वोटों का विकेंद्रीकरण…
यूं तो शाजापुर विधानसभा तीन दशकों से कांग्रेस के कब्जे में रही है, लेकिन 2023 का चुनाव कांग्रेस हारी है. शुजालपुर विधानसभा की बात करें, तो यहां भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है. कालापीपल में भी 2018 का चुनाव छोडक़र यहां भी भाजपा हमेशा मजबूत रही है. यही स्थिति आगर विधानसभा की भी है. सन 1998 में कांग्रेस को जीत मिली थी. उसके बाद से लगातार भाजपा जीत रही है. केवल सोनकच्छ विधानसभा ऐसी विधानसभा है, जो 2023 में कांग्रेस हारी है. लंबे समय तक सोनकच्छ विधानसभा में कांग्रेस का कब्जा रहा है और देवास विधानसभा से तो लगातार भाजपा का ही वर्चस्व देखने को मिला है. यही हाल आष्टा विधानसभा का है. यहां भी कांग्रेस जीत के लिए संघर्ष करती रही है.
विधानसभा में देवास का अल्पसंख्यक राजघराने के साथ रहता है
देवास विधानसभा में भाजपा की जीत का प्रमुख आधार अल्पसंख्यक समाज के वोट देवास राजघराने के साथ होना है. यहां तक कि देवास के कई मुस्लिम बाहुल्य वार्डों से भी भाजपा को जीत मिलती रही है. 2009 में देवास महाराज स्व. तुकोजीराव पंवार और पूर्व सांसद थावरचंद गेहलोत की राजनीतिक दूरियां जगजाहिर थी. यही कारण है कि 2009 में भाजपा को देवास से कम लीड मिली थी और भाजपा चुनाव हार गई थी. इस बार राजघराने और विधायक महारानी व वर्तमान सांसद महेंद्र सोलंकी के बीच राजनीतिक अदावत तो है, लेकिन प्रधानमंत्री के चेहरे के कारण देवास में भाजपा को उतना नुकसान नहीं होगा, लेकिन वोटों का प्रतिशत जरूर भाजपा की संभावित लीड पर असर डालेगा. दोनों के बीच राजनीतिक अदावत का प्रमुख कारण है कि देवास विधानसभा में महारानी के साथ अल्पसंख्यक समाज का भरपूर समर्थन है, तो वहीं दूसरी ओर सांसद महेंद्र सोलंकी कट्टर सनातन की छवि के साथ मैदान में है. यही प्रमुख कारण दोनों के बीच राजनीतिक अदावत का है. सांसद महेंद्र सोलंकी ने कट्टर सनातन छवि को स्थापित करने के लिए देववासिनी सेना का भी गठन किया है और वे मां चामुंडा टेकरी पर भंडारे का आयोजन लंबे समय से कर रहे हैं. यह पहला अवसर होगा जब मां चामुंडा टेकरी पर किसी सांसद ने राजघराने के बिना इतना लंबा आयोजन किया हो.
इन विधानसभाओं में भाजपा को मिलने वाली संभावित लीड
विधानसभा मिलने वाली संभावित लीड
ठ्ठ शाजापुर 15 से 20 हजार
ठ्ठ शुजालपुर 15 से 20 हजार
ठ्ठ कालापीपल 20 से 22 हजार
ठ्ठ आगर 25 से 30 हजार
ठ्ठ देवास 50 से 60 हजार
ठ्ठ सोनकच्छ 20 से 25 हजार
ठ्ठ आष्टा 25 से 30 हजार
ठ्ठ हाटपिपलिया 25 से 30 हजार