अप्रवासी भारतीयों से बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार

अप्रवासी भारतीय और भारतवंशी विदेश में रहकर भी भारत की तरक्की में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. उनकी वजह से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लबालब है. इसके अलावा और अप्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों के निवेश के कारण भी देश को तरक्की का नया रास्ता मिल रहा है. दरअसल,यह भारत के लिये गौरव की बात है कि सारी दुनिया में कार्यरत भारतीय कामगारों ने खून-पसीने की कमाई से अर्जित धनराशि में से वर्ष 2022 में 111 बिलियन डॉलर अपने देश भेजे हैं. इस तरह भारत दुनियाभर में भारत वंशियों की कमाई से सबसे ज्यादा धन प्राप्त करने वाले देश के रूप में स्थापित हुआ है.यह आंकड़ा जहां विश्व में भारतीय श्रमशक्ति की गाथा को दर्शाता है, वहीं देश की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को दिखाता है. निश्चित रूप से यह उन कामगारों के भारत के प्रति आत्मीय लगाव को ही बताता है. भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान करने वाले इन श्रमवीरों के प्रति देश कृतज्ञ है. निश्चित रूप से इसका भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की विश्व प्रवासन रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में भारत, मैक्सिको, चीन, फिलीपींस व फ्रांस सबसे ज्यादा धन पाने वाले देशों के रूप में सूचीबद्ध हुए हैं. यह धन भेजने के आकंड़े का बढऩा दर्शाता है कि प्रवासियों का अपनी मातृभूमि के बीच कितना मजबूत व स्थायी संबंध है.अब इसके साथ ही भारत सरकार का दायित्व बनता है कि इस उपलब्धि की खुशी मनाते वक्त प्रवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी पहचाने.संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि इन प्रवासी कामगारों को वित्तीय शोषण, प्रवासन लागत के कारण बढ़ते ऋण दबाव, नस्लीय भेदभाव व कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इनके निराकरण के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है.भारत सरकार को प्रवासी कामगारों की समस्याओं के समाधान के लिये हमारे दूतावासों के जरिये विशेष कदम फ़ौरन उठाने चाहिए. दरअसल, खाड़ी सहयोग परिषद के राज्यों में जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी कार्यरत हैं, उनके अधिकारों का उल्लंघन जारी है. खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय कामगारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा. विशेष तौर पर अर्द्ध-कुशल श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के कई तरह के संकटों को बढ़ा दिया था.बड़ी संख्या में उनकी नौकरियां खत्म हुई, वेतन नहीं मिला. सामाजिक सुरक्षा के अभाव में कई लोगों को कर्ज में डूबना पड़ा. जिसके चलते बड़ी संख्या में ये कामगार स्वदेश लौटे.अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की तरफ भारतीय छात्रों के बढ़ते रुझान की ओर भी यह अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट इशारा कर रही हैं.अभी तो प्रवासन के बदलते परिदृश्य में प्रवासी भारतीयों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिये ठोस प्रयासों की जरूरत है.किसी भी तरह श्रमिकों का शोषण न हो . साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय कामगारों के लिये सुरक्षित व व्यवस्थित प्रवासन मार्ग संभव हो सके. यह समावेशी विकास की पहली शर्त भी है. देश का यह नैतिक दायित्व बनता है कि विदेशों में कामगारों के हितों की रक्षा के साथ ही भारत में रह रहे उनके परिवारों का भी विशेष ख्याल रखा जाए. जिससे उनका देश के प्रति लगाव और गहरा हो सके. समस्या केवल खाड़ी के देशों के भारतीयों की ही नहीं है, यूरोप और अमेरिका भी लगातार अपने नियम कड़े करते जा रहे हैं,जिससे वहां रह रहे भारतीयों के लिए समस्याएं खड़ी हो गई हैं. हाल ही में ब्रिटेन में ऋषि सुनक की सरकार ने आव्रजन के नियमों को कड़ा बनाया है. अन्य यूरोपीय देश भी इसी राह पर चल रहे हैं. अमेरिका में चुनाव के दौरान रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस मामले में कड़े कदम उठाने की चेतावनी दी है. कुल मिलाकर भारत को अप्रवासी भारतीयों और भारत वंशियों की समस्याओं को हल करने के लिए गंभीर प्रयास करना चाहिए.

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