नयी दिल्ली, 13 मई (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने झारखंड में कथित भूमि घोटाले से संबंधित धन शोधन के एक मामले में तीन माह से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उच्च न्यायालय के तीन मई के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता की पीठ ने श्री सोरेन का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की ओर से बार-बार शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किये जाने पर ईडी को नोटिस जारी किया और मामले को 17 मई को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
पीठ इस मामले को गर्मी की छुट्टियों के दौरान या जुलाई में विचार के लिए सूचीबद्ध करना चाहती थी, लेकिन श्री सिब्बल ने सुनवाई के लिए शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। उन्होंने तारीखों की सूची का भी हवाला दिया, क्योंकि शीर्ष अदालत ने श्री सोरेन को अपनी गिरफ्तारी और मामले में हुई देरी के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा था, जिससे 2024 के आम चुनावों के दौरान श्री सोरेन के अधिकार कथित तौर पर प्रभावित हुए।
श्री सिब्बल ने अपनी दलील के समर्थन में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार को एक जून तक दी गई अंतरिम जमानत और अपनी याचिका की अग्रिम प्रति ईडी के अधिवक्ता को छह मई को पहुंचा दिए जाने का हवाला दिया। पीठ के शुरू में 20 मई को सुनवाई करने के संकेत पर श्री सिब्बल ने कहा कि यह ‘बहुत बड़ा अन्याय’ होगा अगर 17 मई को मामले की सुनवाई नहीं हो सकी तो बेहतर होगा कि अदालत इसे खारिज कर दे, क्योंकि तब तक राज्य में लोकसभा चुनाव खत्म हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि श्री सोरेन का मामला श्री केजरीवाल के मामले में शुक्रवार को दिए गए आदेश के दायरे में आता है, जिसमें उन्हें चुनाव के दौरान प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया है।
पीठ ने शुरुआत में श्री सिब्बल से पूछा कि क्या श्री सोरेन का (विवादित) जमीन पर कब्जा है। इस पर श्री सिब्बल ने कहा, “2009 के बाद से मेरा (सोरेन) कभी कब्जा नहीं रहा। साथ ही यह भी कहा कि जिन लोगों का कब्जा है, उन्होंने कहा कि यह मंत्रीजी का है।”
झारखंड उच्च न्यायालय ने श्री सोरेन की अपनी 31 जनवरी को गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका तीन मई को खारिज कर दी थी। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा था कि उच्च न्यायालय के श्री सोरेन की याचिका खारिज करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर वह अगले सप्ताह सुनवाई करेगा। पीठ ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर उनकी याचिका का उस दिन निपटारा कर दिया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर श्री सोरेन की याचिका पर सुनवाई करते हुए 29 अप्रैल को ईडी को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया था। साथ ही, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि उच्च न्यायालय (जिसने इस मामले में 28 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था) छह मई से शुरू होने वाले सप्ताह से पहले चाहे तो कोई आदेश पारित कर सकता है।
दो सदस्यीय शीर्ष अदालत की इस पीठ के समक्ष 28 अप्रैल को पेश हुए श्री सिब्बल ने 24 अप्रैल को भी झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता का पक्ष रखते हुए उनकी ओर से अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया था। श्री सिब्बल ने पीठ के समक्ष ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान कहा था कि इस मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय ने 27 और 28 फरवरी को सुनवाई की थी, लेकिन अभी तक (24 अप्रैल) कोई आदेश पारित नहीं किया गया है।
पीठ के समक्ष उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायालय के आदेश पारित कराने में देरी का मतलब यह होगा कि श्री सोरेन लोकसभा चुनाव के दौरान जेल में ही रहेंगे। उन्होंने दलील दी थी कि उच्च न्यायालय की ओर से इस मामले में कोई आदेश पारित करने में देरी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर की थी।
ईडी ने 31 जनवरी 2024 को श्री सोरेन को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के मद्देनजर उसी दिन उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था। उन्होंने तब राहत की गुहार लगाते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली थी। उनकी याचिका दो फरवरी को खारिज कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की विशेष पीठ ने तब (दो फरवरी को) याचिका खारिज करते हुए श्री सोरेन को अपनी जमानत के लिए झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा था।
पूर्व मुख्यमंत्री को झारखंड में कथित भूमि घोटाले से संबंधित धन शोधन के एक मामले में ईडी ने 31 जनवरी 2024 को एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद में गिरफ्तार किया था। राज्य की एक विशेष अदालत ने एक फरवरी को उन्हें एक दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था, जिसकी अवधि समय-समय पर बढ़ाई गई।
शीर्ष अदालत की पीठ ने दो फरवरी को याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वरिष्ठ श्री सिब्बल से पूछा था, “आपको उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाना चाहिए? अदालतें सभी के लिए खुली हैं।”
विशेष पीठ ने वकील से यह भी कहा था, “उच्च न्यायालय भी संवैधानिक अदालतें हैं। यदि हम एक व्यक्ति को अनुमति देते हैं तो हमें ऐसी अनुमति सभी को देनी होगी।”
श्री सोरेन की ओर से वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने भी दलील दी थी। उन्होंने दलील देते हुए कहा था कि शीर्ष अदालत को मामले पर विचार करने का समवर्ती क्षेत्राधिकार मिला हुआ है। वहीं, श्री सिब्बल ने कहा था कि यह अदालत हमेशा अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकती है।
पीठ पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा था और उसने श्री सोरेन की याचिका खारिज कर दी थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी याचिका में गुहार लगाते हुए अपनी गिरफ्तारी को अनुचित, मनमाना और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन घोषित करने का अनुरोध शीर्ष अदालत से किया था।