कोरोना वैक्सीन को लेकर अनावश्यक डरे नहीं

कोरोना वैक्सीन को लेकर जिस तरह से चर्चाएं चल रही हैं, वो किसी के भी हित में नहीं हैं. इन चर्चाओं को अविलंब विराम देना चाहिए क्योंकि इससे समाज में बेवजह डर का माहौल बन रहा है. भारत में लोकसभा चुनाव के कारण इस मुद्दे का सियासी इस्तेमाल भी हो रहा है .दरअसल,कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने स्वीकारा कि उसकी कोविशील्ड वैक्सीन के रेयर साइड इफेक्ट हो सकते हैं. इसको लेकर देश में नए सिरे से बहस शुरू हुई. विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि घबराएं नहीं, टीके से जुड़ा खतरा दस लाख में से एक व्यक्ति को होता है.वैसे देश के चुनावी माहौल के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के कोलाहल में यह तय कर पाना कठिन है कि हवा में तैर रही खबर की तार्किकता क्या है? यह भी कि यह खबर वास्तविक है या राजनीतिक लक्ष्यों के लिये गढ़ी गई है. वहीं दूसरी ओर व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के चलते भारत के खिलाफ जो वैश्विक गुटबंदी चल रही है, कहीं आरोप इस कड़ी का हिस्सा तो नहीं है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने के चार से बयालीस दिनों के भीतर टीटीएस प्रभाव हो सकता है, जो ब्लड क्लॉट बना सकता है. जिससे कालांतर प्लेटलेट्स की कमी शरीर में हो सकती है.दरअसल, वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन में एक अदालती सुनवाई के दौरान वैक्सीन के दुर्लभ प्रभावों की बात को माना था. कंपनी के विशेषज्ञों का कहना है कि टीटीएस दिमाग, फेफड़ों, आंत की खून की नली आदि में तो पाया गया लेकिन किसी को हार्ट अटैक की समस्या नहीं हुई. साथ ही यह भी कि कोविड संक्रमण के कारण भी ब्लड क्लॉट के मामले सामने आए हैं.कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि वैक्सीन से इम्यून सिस्टम में टी व बी सेल गतिशील होने से इम्यून प्रतिक्रिया बढ़ती है, जिसके बाद खून की नली में सूजन से ब्लड क्लॉट बनता है. जिसमें ज्यादा प्लेटलेट्स इस्तेमाल होने लगते हैं. जो कि टीटीएस की स्थिति होती है. विशेषज्ञ मानते हैं कि वैक्सीन ने महामारी की घातकता को नब्बे प्रतिशत तक घटाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाई.वहीं वैक्सीन के साइड इफेक्ट छह माह के भीतर सामने आ जाते हैं, इसके उपयोग को दो साल से अधिक का समय हो चुका है.उल्लेखनीय है सरकार ने कोरोना संकट के दौरान कोविशील्ड लेने हेतु व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया था.अब जब इसके दुष्प्रभावों को लेकर संशय पैदा हुआ है तो उसे अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके लोगों की शंकाओं का निवारण भी करना चाहिए. सेहत से जुड़े किसी भी मामले में किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता.यदि किसी तरह असुरक्षा की भावना बढ़ती है तो सरकार को तुरंत दूर करना चाहिए. नागरिकों की शंकाओं का तुरंत ही समाधान किया जाना चाहिए. पब्लिक डोमेन में कंपनी द्वारा चुनावी बांड खरीदे जाने को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं. जिसके चलते लोगों के मन में कई तरह के सवाल उपजे हैं, जिनका निराकरण भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है.हमें यह भी स्वीकारना चाहिए कि संकटकाल में इस वैक्सीन की तुरंत उपलब्धता से देश की बड़ी आबादी को सुरक्षा कवच उपलब्ध कराया जा सका. बेहद कम समय में कोरोना से लडऩे के लिये उपलब्ध कराई गई वैक्सीन के साइड इफेक्ट से इनकार भी नहीं किया जा सकता. इस बात की आशंका भी है कि टीएसएस प्रभाव कोरोना संक्रमण के बाद भी सामने आ सकते हैं.कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि लॉकडाउन के कारण लाइफ स्टाइल बिगडऩे से लोगों की गतिशीलता में कमी, मानसिक तनाव वृद्धि से मोटापे व मधुमेह के चलते भी हृदयाघात के मामले बढ़े हैं. वहीं दूसरी ओर कुछ हृदयरोग विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी को पहले ही बताना चाहिए कि वैक्सीन से टीटीएस जैसे साइड इफेक्ट हो सकते हैं.जानकारी होने पर लोग अपनी प्राथमिकता की वैक्सीन ले सकते थे. वहीं यह भी तार्किक है कि कोई दवा अथवा वैक्सीन यदि असर करती है तो उसके साइड इफेक्ट भी निश्चित रूप से होते हैं.कुछ विशेषज्ञ वैक्सीन के दुष्प्रभावों के आरोपों के मूल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रही वैक्सीन राजनीति को भी बताते हैं. कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ वैक्सीन के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिये हफ्ते में दो दिन सिर्फ एक बार खाना खाने की सलाह देते हैं, जिससे ब्लड क्लॉटिंग रोकने में मदद मिल सकती है. जहां तक भारत के विशेषज्ञों का प्रश्न है तो अधिकांश विशेषज्ञों ने कहा है कि पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है. नियमित व्यायाम और संयमित खान पान से आसानी से किसी भी साइड इफेक्ट से निबटा जा सकता है. वैसे कंपनी ने खुद कहा है कि यह साइड इफेक्ट 10 लाख में से किसी एक मरीज को होते हैं. इसका मतलब इसे शून्य दुष्प्रभाव ही मनाना चाहिए. वैसे किसी भी वैक्सीन के साइड इफेक्ट तो होते ही हैं. दरअसल सिर्फ वैक्सीन ही नहीं, सभी एलोपैथी की दवाओं के साइड इफेक्ट होते हैं. इसलिए इस मामले में चल रही चर्चाओं से डरने की जरूरत नहीं है.

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