2024 के लोकसभा चुनाव में दो चरणों का मतदान हो चुका है. चुनाव प्रचार अभियान के दौरान यह देखने में आ रहा है कि अनावश्यक मुद्दे जनता के बीच ले जाए जा रहे हैं. जबकि वैकल्पिक कार्यक्रमों और बुनियादी मुद्दों का उपयोग विभिन्न दल अपने चुनाव प्रचार अभियान में नहीं कर रहे. मतदाता भी इसी वजह से उदासीन है. हालांकि इस चुनाव से देश की दिशा और दशा तय होने वाली है. चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की हैं.भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र, जिसे वह संकल्प पत्र कहती है, में साफ कहा है कि वह समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए काम करेगी. पार्टी का मुख्य फोकस भारत के युवाओं, महिलाओं, गरीबों और किसानों पर है. जब कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा था कि देश को जाति के नाम पर बांटना ‘पाप’ है.उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए चार सबसे बड़ी जातियां युवा, महिलाएं, गरीब और किसान हैं और उनकी पार्टी उनकी बेहतरी के लिए काम करेगी. इस बीच, सरकार ने गरीबों को घरों के लिए सब्सिडी, मुफ्त राशन, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन, गरीबों के लिए शौचालय, बिजली, पानी की सुविधा या प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) प्रदान किया. सभी को सरकारी सहायता उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर प्रदान की जाती थी, न कि जाति या धर्म के आधार पर.वैसे 4 जून भी अब ज़्यादा दूर नहीं है. उस दिन यह तय हो जाएगा कि देश अगले 5 साल किस दिशा में चलेगा. जाति सर्वेक्षण के वादे के बाद देश की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का आर्थिक रूप से पुनर्निर्धारण होगा अथवा सभी को उनका अधिकार उनकी आबादी के अनुसार नहीं आर्थिक आधार पर मिलेगा. इन दोनों धाराओं का परचम शीर्ष राजनेता नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी थामे हुए हैं. अब तक देश में कई बार चुनावी वादे जुमले भी साबित हुए हैं, एक बार वोट देने के बाद मतदाता के पास हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ रहता भी नहीं है.इधर, अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो पार्टी जाति सर्वेक्षण के वादे के बाद देश की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का आर्थिक रूप से पुनर्निर्धारण करेगी. कथित तौर पर कहा गया कि सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ‘एक जाति जनगणना करेगी ताकि पिछड़े, एससी, एसटी, सामान्य जाति के गरीबों और अल्पसंख्यकों को पता चले कि देश में उनकी (संख्या के संदर्भ में) कितनी हिस्सेदारी है.इसके बाद, यह पता लगाने के लिए एक वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण किया जाएगा कि देश की संपत्ति किसके पास है.हम आपको वह देंगे जो आपका अधिकार है.हालांकि पुनर्वितरण शब्द का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन निहितार्थ स्पष्ट है : जिसकी जितनी ज्यादा जनसंख्या, उसको उतने ज्यादा अधिकार. कांग्रेस का घोषणा पत्र जनवादी प्रतीत होता है लेकिन पार्टी के साथ समस्या यह है कि उसने देश में लगभग 60 वर्षों तक शासन किया है. ऐसे में जनता ने कांग्रेस को भली-भांति परखा है. कांग्रेस के सामने विश्वसनीयता का भी संकट है. विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने इसी तरह की गारंटियां दी थी लेकिन जनता ने भरोसा नहीं किया.बहरहाल,
संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि सरकार देश के हर वर्ग के साथ समान व्यवहार करेगी, लेकिन जातियों और समुदायों का वोट हासिल करने की होड़ में राजनीतिक दल समाज और संविधान के प्रति अपना कर्तव्य भूल जाते हैं. कुल मिलाकर घोषणा पत्र या कथित संकल्प पत्रों का जनता पर अधिक असर नहीं पड़ता क्योंकि जनता जानती है कि चुनाव जीतने के बाद सभी नेता अपने वादे भूल जाते हैं. इस बार यह भी देखना में आ रहा है कि युवाओं का मतदान के प्रति कम रुझान है. इसका मतलब युवा मतदाता जानते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल में उनकी समस्याओं को हल करने की क्षमता नहीं है. यह सभी को पता है कि युवाओं की सबसे बड़ी समस्या रोजगार से जुड़ी होती है. बेरोजगारी की स्थिति में पिछले सात दशकों में कोई सुधार नहीं आया है. इस कारण भी युवाओं का मोह भंग है. इसके बावजूद जनता को अधिक से अधिक मतदान करना चाहिए क्योंकि चुनाव से देश का भविष्य तय होता है.