लाल आतंक का समूल नाश जरूरी

पिछले दिनों संसद में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि देश में आतंकी घटनाओं में 71 $फीसदी कमी आई है. केंद्र सरकार पिछले लगभग दो दशकों से नक्सल गतिविधियों को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखती है. डॉ मनमोहन सिंह सरकार के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने संसद में नक्सलवाद और माओवादियों को आतंकवादी श्रेणी में रखा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भी नक्सलवादियों को आतंकवादी ही मानती रही है. जाहिर है केंद्र सरकार के प्रयासों की वजह से आतंकवाद अब केवल कश्मीर के दो-तीन जिलों तक सिमट गया है. यही स्थिति नक्सलवाद की है. नक्सली गतिविधियां अब केवल छत्तीसगढ़ के उड़ीसा और महाराष्ट्र से सटे तीन-चार जिलों तक सीमित हो गई हैं. अन्यथा पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से नक्सलवाद का लगभग सफाया हो गया है. दरअसल, इस समय नक्सलवाद की चर्चा छत्तीसगढ़ की घटनाओं के कारण हो रही है. हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों ने बड़ी कार्रवाई करते हुए दो अलग-अलग मुठभेड़ों में 30 नक्सलियों को मार गिराया. बीजापुर में 26 और कांकेर में 4 नक्सली मारे गए . यह कार्रवाई बीजापुर और कांकेर जिलों में की गई. बस्तर संभाग में गुरुवार को अब तक कुल 30 नक्सलियों के शव बरामद हुए हैं. साथ ही मुठभेड़ स्थल से भारी मात्रा में नक्सलियों के हथियार और गोला बारूद भी बरामद हुए.दरअसल, यह

एक महीने के भीतर यह दूसरी बड़ी मुठभेड़ है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में नक्सली मारे गए हैं. यह बैलाडिला की तराई वाला इलाका है जो बीजापुर और दंतेवाड़ा की सरहद के पास पड़ता है.कभी नक्सलियों के गढ़ कहे वाले इलाके में नक्सलवाद का सफाया होना अच्छा संकेत है.बीते तीन महीनों में बस्तर से गरियाबंद तक के आदिवासी बेल्ट में 130 नक्सली मारे गए हैं. जाहिर है हाल में छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों को जो सफलता मिली वो स्वागत योग्य है. इसलिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के इस दावे पर विश्वास रखा जाना चाहिए कि अगले वर्ष 31 मार्च तक देश से नक्सलवाद पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. बहरहाल, एक समय यह लगता था कि नक्सलवाद की जड़ सामाजिक और आर्थिक विषमता में छिपी है. हमारे देश के कुछ सुदूर क्षेत्र विकास की मुख्य धारा से पीछे छूट गए हैं, इसलिए नक्सलवाद बढ़ रहा है, लेकिन आर्थिक उदारीकरण के बाद यह महसूस किया गया कि मौजूदा नक्सलवाद सामाजिक विषमता के खिलाफ प्रारंभ हुआ आंदोलन नहीं, बल्कि विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप का जरिया बन गया है. आजकल के इस नक्सलवाद का उद्देश्य शोषण को समाप्त करना नहीं, बल्कि देश के टुकड़े करना है. जाहिर है मौजूदा नक्सलवाद एक सामाजिक समस्या नहीं बल्कि कनूनी चुनौती है.इसीलिए नक्सलवादियों के सफाए के लिए सुरक्षा बलों द्वारा लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं. इसी के साथ केंद्र सरकार नक्सल प्रभावित जिलों में आधारभूत विकास की दष्टि से विशेष कार्य योजना पर भी काम कर रही है. जिसके तहत बिजली, सडक़, सिंचाई सुविधाएं, स्कूल, उद्योग इत्यादि लगाए जा रहे हैं. जाहिर है नक्सल प्रभावित जिले अब विकास की मुख्यधारा में आ रहे हैं या लाए जा रहे हैं. यही वजह है कि कथित नक्सलियों को अब स्थानीय लोगों का समर्थन नहीं मिल रहा है. नक्सलियों के पुनर्वास कार्यक्रम को भी इसीलिए सफलता मिल रही है क्योंकि स्थानीय लोग नक्सलवाद के खिलाफ हो गए हैं. कुल मिलाकर नक्सलवाद यानी लाल आतंक का सफाया हो रहा है यह राहत की बात है.

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