भोपाल, 13 मार्च (वार्ता) भारत का गौरवशाली इतिहास शौर्य, पराक्रम और ज्ञान का रहा है। भारत के पास अपना आर्थिक चिंतन एवं दर्शन रहा है, इसलिए भारत समृद्धशाली और सोने की चिड़िया कहलाता था। भारत अपने ज्ञान और विज्ञान के आधार पर विश्वमंच पर सिरमौर था और विश्वगुरु की संज्ञा से सुशोभित था। भारत का ज्ञान हजारों साल पुराना है, जो आज विश्व भर में सर्वत्र झलक रहा है।
उच्च शिक्षा मंत्री इन्दर सिंह परमार ने आज भोपाल स्थित उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान के सभाकक्ष में, उच्च शिक्षा विभाग अंतर्गत भारतीय ज्ञान परम्परा, विविध संदर्भ विषय पर पाठ्यक्रम निर्माण हेतु आयोजित दो दिवसीय राज्यस्तरीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस में यह बात कही। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान को सही परिप्रेक्ष्य में, तथ्यपूर्ण रूप से समाज के समक्ष रखने की आवश्यकता है। इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने सही तथ्यों के साथ, भारतीय इतिहास में किए गए छल से मुक्त होने का अवसर दिया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के क्रियान्वयन में, भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश महत्वपूर्ण है। पुस्तक लेखन में लेखकों का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है, इसके लिए लेखकों में भारतीय दृष्टि की महती आवश्यकता है। भारत को केंद्र में रखकर, भारतीय दृष्टि के साथ पाठ्यक्रम निर्माण करना होगा। लेखनी में भारतीयता का भाव परिलक्षित होना चाहिए। “भारतीय ज्ञान परम्परा” असीमित है, पुस्तकों में भारतीय ज्ञान का तथ्यपूर्ण समावेश व्यापक एवं सतत् प्रक्रिया है। समाज के प्रश्नों का समाधान, शिक्षा के मंदिरों से ही मिलेगा और समाधान के लिए व्यापक और सकारात्मक चर्चा होना चाहिए।
श्री परमार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में, पाठ्यक्रम निर्माण एवं उसमें ‘भारतीय ज्ञान परम्परा’ का सफल समावेश करवाने के लिए समस्त सहयोगी शिक्षाविदों को बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित की। साथ ही उन्होंने इस जटिल कार्य के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक सावधानियों से भी अवगत करवाया और पाठ्यक्रम निर्माण को अंतिम रूप देने के पूर्व विषयविदों के साथ संवाद कर सूक्ष्मता के साथ पुनः तथ्यपूर्ण परीक्षण करने को भी कहा।
उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तो लागू हो चुकी है, किन्तु इसमें भारतीय ज्ञान परम्परा का पर्याप्त समावेश अपेक्षित था। मध्यप्रदेश ने शिक्षा में “भारतीय ज्ञान परम्परा” के समावेश के लिए देश भर में सबसे अधिक प्रयास किया है और इसका सकारात्मक परिणाम विद्यार्थियों के समक्ष होगा। शिक्षाविदों के परिश्रम एवं पुरुषार्थ से तैयार किए गए “भारतीय ज्ञान परम्परा” से समृद्ध नवीन पाठ्यक्रम, सत्र 2025-26 से ही प्रदेश के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध होंगे। श्री परमार ने कहा कि शिक्षाविदों के प्रयासों से अब भविष्य के विद्यार्थियों को अपने पूर्वजों के ज्ञान पर गर्व होगा और विद्यार्थियों में भारतीय ज्ञान के प्रति स्वत्व का भाव जागृत होगा। श्री परमार ने कहा कि भारतीय समाज में विद्यमान परम्पराओं एवं प्रचलित मान्यताओं के होने के कारणों एवं तथ्यपूर्ण उत्तर, शिक्षाविदों के प्रयासों से तैयार नवीन पाठ्यक्रमों में उपलब्ध होंगे, जो विद्यार्थियों के लिये न केवल उपयोगी बल्कि रोचक भी होंगे।
उन्होंने कहा कि शिक्षाविदों के भारत केंद्रित शिक्षा को समृद्ध करने के प्रयास, देश भर में अनुकरणीय होंगे और उनकी राष्ट्र के पुनर्निर्माण में में सार्थक सहभागिता एवं योगदान अविस्मरणीय रहेगा। मंत्री श्री परमार ने कहा कि भारत के संदर्भ में, भारतीय दृष्टि के साथ लेखन की पद्धति विकसित होगी और प्रदेश इसके लिए देश भर में अभिप्रेरणा का केंद्र बनेगा। श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में पाठ्यक्रमों में “भारतीय ज्ञान परम्परा” के समृद्ध समावेश की दृष्टि से मध्यप्रदेश, देश भर में अग्रणी होगा।
इस अवसर पर मप्र हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक अशोक कड़ेल, म.प्र. प्रवेश एवं शुल्क विनियामक समिति के अध्यक्ष डॉ. रवींद्र कान्हेरे, सूरत (गुजरात) से पधारे शिक्षाविद् प्राध्यापक, मनोविज्ञान डॉ. रुद्रेश व्यास एवं क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा (भोपाल-नर्मदापुरम संभाग) डॉ. मथुरा प्रसाद सहित अध्ययन मंडल के सदस्यगण, विभिन्न शिक्षाविद्, विविध विषय विशेषज्ञ, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलगुरू, विविध महाविद्यालयों के प्राचार्य, प्राध्यापकगण एवं अन्य विद्वतजन उपस्थित थे। संस्थान के निदेशक डॉ प्रज्ञेश अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।