होलिका को पहनाए जाते हैं गोबर के आभूषण

शाजापुर,आभूषण का नाम सामने आते ही सोने, चांदी या फिर आर्टिफिशियल आभूषण का ही ध्यान आता है, लेकिन नगर और अंचलों में इन दिनों अनेक घरों पर गोबर के आभूषण बनाएं जा रहे हैं. इस परंपरा का अनेक वर्षों से निर्वहन किया जा रहा है. ये गोबर से बनाएं जाने वाले आभूषण वृक्ष रूपी होलिका को पहनाएं जाएंगे. जिसका दहन होने के पश्चात इन गोबर के आभूषणों के कुछ हिस्सों को घर पर लाकर वर्ष भर रखा जाएगा. क्योंकि मान्यता है कि इसे घर पर रखने से छोटे बच्चों को नजर से बचाया जा सकता है. वहीं घर में भी समृद्धि बनी रहती है.

उल्लेखनीय है कि नगर सहित अंचलों में होलिका दहन के अवसर पर होलिका का पूजन कर उस पर गोबर से बनाएं आभूषणों की माला पहनाएं जाने की परंपरा है. इसी परंपरा के तहत आज भी नगर में होलिका दहन के कुछ दिन पूर्व से अनेक घरों में गाय के गोबर से होलिका के शृंगार के लिए आभूषण तैयार किए जाते हैं. जिन्हें भरगुलिया कहा जाता हैं. पं. राजेंद्र व्यास शाजापुर वाले ने बताया कि भरगुलिया बनाने के पीछे मान्यता है कि किसी भी प्रकार के पूजन में गोबर के उपले का विशेष महत्व रहता है. माता की ज्योत करना हो, होम करना हो, घर के चूल्हे की अग्नि को प्रज्वलित करना हो या घर का वातावरण शुद्ध करना हो. गाय के गोबर के कंडे जलाए जाते हैं. इसलिए होलिका दहन में भी इनका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है. गाय के गोबर से निकलने वाला धुंआ नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है. होलिका दहन में उपले या भरगुलिये बनाए जाते हैं. गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर बीच मे छेद कर इनकी माला होलिका को पहनाई जाती है. पं. व्यास ने बताया कि इन्हें जलाने से घर की परेशानियां दूर होती है, हानिकारक बैक्टीरिया भी मर जाते हैं, वातावरण शुद्ध होता है. होलिका दहन में इनके इस्तेमाल से कुंडली मे अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं.

बच्चों को बूरी नजर से बचाते हैं जले हुए भरगुलियों के अवशेष…

पं. व्यास ने बताया कि होलिका दहन के साथ ही भरगुलियों का भी दहन होता है. जब होलिका की अग्नि शांत होती है, तो इन जले हुए भरगुलियों को अंगार के रूप में घर में लाया जाता हैं. क्योंकि होलिका की अग्नि धर्म रूपी अग्नि है. इसकी अग्नि से लोग अपने घर का चूल्हा भी प्रज्वलित करते हैं. वहीं इन जले हुए भरगुलियों को घर में रखने से बच्चों को बुरी नजर से भी बचाया जाता है.

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