एनएच 39 के गोदवाली में कोल डस्ट निगल रही जिंदगी

एक लेन कोलयार्ड में तब्दील दूसरी में कोल डस्ट की मोटी परत, प्रदूषण नियंत्रण अमला एसी में बैठ खा रहे मलाई

नवभारत न्यूज

सिंगरौली 21 अप्रैल। जिले के गोदवाली क्षेत्र के नेशनल हाईवे 39 मुख्य मार्ग की सड़क एक लेन सड़क कोल यार्ड के लिए सुरक्षित हो गया है। वही चालू दूसरे लेने की सड़क कोल डस्ट से पटी है। कोयला लोडिंग और अनलोडिंग से इस मार्ग से गुजरना काफी जोखिम भरा हो गया है। राहगीरों की हर सांस में कोयले की धूल घुल रही है। यूं कहे कि धूल के गुब्बार से यहां सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। प्रदूषण से कराह रहे गोदवाली वासियों को राहत मिलने की कोई उम्मीद नजर नही आ रही है। प्रदूषण के कारण तथा उसके निवारण पर कई बार बैठक व एक्शन प्लान बनाया गया। लेकिन सब कागजों व आश्वासन में ही सिमट कर रह गया। अभी भी धूल की मोटी परत सड़क की पटरियों पर पड़ी है लेकिन इससे एमपीआरडीसी के अधिकारी भी अंजान हैं। जिसके चलते कोयले का लोडिंग-उनलोडिंग कार्य करने वाले संविदाकारों का हौसला लगातार बढ़ता जा रहा है।

गौरतलब हैं कि एनएच 39 गोदवाली में रेलवे का कोलयार्ड बनाया गया है। यहां एनसीएल की खदानों से सड़क के जरिए कोयला का परिवहन किया जाता है। फिर इस कोयले को रेलवे ट्रैक में लोडिंग की जाती हैं। रेलवे कोलयार्ड के बगल से नेशनल हाईवे एनएच 39 गुजरती है। इस दौरान कोयले के लोडिंग और अनलोडिंग से धूल के गुब्बार उड़ता है। गोदवाली क्षेत्र में करीब 1 किलोमीटर रेलवे कोलयार्ड के किनारे सड़क में मोटरसाइकिल से चलना भी जोखिम भरा साबित हो रहा है। सड़क की एक लेन कोलियार्ड में तब्दील है। जबकि दूसरी लेन की सड़क पर एकत्रित कोयले की गर्द जमा है। कभी पानी का छिड़काव नही होने से चारों ओर धूल फैलने से दिन में ही अंधेरे जैसा महसूस होता है। प्रदूषण से वातावरण पूर्णतया विषाक्त हो गया है। कोल डस्ट से लोग सांस भी नही ले पा रहे हैं। सबसे दयनीय स्थिति दोपहिया वाहन चालकों व राहगीरों की है। एक किलोमीटर तक धूल सड़क से भी ऊंची हो गई है। यह क्षेत्र का सफर आए दिन जानलेवा साबित हो रहा है। सड़क से पटरी पर उतरते ही दोपहिया वाहन चालक कोल डस्ट में फसकर धूल की चादर ओढ़ ले रहे हैं। गड्ढों में तब्दील पटरी पूर्णतया धूल के गर्द से पटी है। इसके बावजूद क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अमला और एनसीएल अधिकारी बेशुध है। प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी पर कोयला कोल ठेकेदारों को संरक्षण देने का आरोप है। क्षेत्रीय नागरिकों ने मुख्य मार्ग की पटरी पर दो साल से जमे धूल को हटाने की मांग की है। हालात बयां करते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिकारी भीषण गर्मी में अपने दफ्तरों के 22 डिग्री टेंपरेचर में आराम फरमा रहे हैं। वही अधिकारियों को कोल संचालकों से हर महीने मोटी सुविधा शुल्क पहुंच रही है। यही वजह है कि अधिकारी मौन धारण किए हुए हैं।

लोडिंग-उनलोडिंग संविदाकारों को संरक्षण

एनसीएल अधिक से अधिक कोयले का खनन करने और डिस्पैच करने में जुटा है तो वही रेलवे कोयला डिस्पैच और राजस्व को बढ़ाने में लगा है। प्रतिदिन सीसीएल की खदानों से हजारों डंपर गाडिय़ां कोल यार्ड पहुंच रहे हैं। वही संविदाकार और ट्रांसपोर्टर तय कोयले के स्टॉक से ज्यादा एनएच 39 के किनारे कोयले का पहाड़ खड़ा कर दिया है। यहां सड़कों में कभी पानी का छिड़काव नही होता है। सूत्रों की माने कोयला स्टीम की चोरी को रोकने के लिए संविदाकार पोकलैंड मशीन और जेसीबी मशीन से कोयले को तोड़ते हैं। जिससे कोयल के छोटे-छोटे कण हवा में मिल जाते हैं। यह सब कारोबार रेलवे अधिकारीयों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिकारियों के संरक्षण में किया जा रहा है।

छाया रहता है एनएच 39 के किनारे काला धुंआ

सुबह होते ही आसमान पर कोयले की डस्ट के कारण काला धुंआ जैसा दिखने लगता है। लोग इस समस्या से परेशान हो रहे हैं। समस्या के समाधान को लेकर प्रबंधन जो कहता है वह होता नही है। जमीनी स्तर पर समस्या कई सालों से व्याप्त है और यही कारण है कि लोग गंभीर बीमारियों से भी ग्रसित हो चुके हैं। पूरे दिन सड़कों पर उड़ती डस्ट की वजह से सड़कों पर चलना भी मुश्किल हो जाता है। जब लोग आवाज उठाते है तो उनको शांत कर दिया जाता है। उड़ते डस्ट पर काबू पाने के लिए पानी का छिड़काव कराया जाना अनिवार्य है।

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