चुनावी बॉन्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ाई बरतते हुए स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को झटका दिया है. चुनावी बॉन्ड पर जानकारी देने के सर्वोच्च अदालत के आदेश पर एसबीआई ने और समय की मांग की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया और 12 मार्च को ही जानकारी उपलब्ध करवाने को कहा.सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को फटकार लगाई कि आदेश जारी होने के बाद से आपने क्या किया?चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई में राजनीतिक दलों के हरेक चुनावी बॉन्ड का नकदीकरण कराने का ब्योरा देने के लिए एसबीआई से कहा था. इसके बाद एसबीआई के 30 जून तक का समय मांगने के लिए याचिका दायर की थी, जिस पर सोमवार को सुनवाई हुई.चुनावी बांड की इस स्कीम को पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया था.सनद रहे यह सुनवाई प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचू? की अध्यक्षता वाली पांच जजों, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ कर रही है. दरअसल, पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था.इसके लिए आयकर अधिनियम और विभिन्न अधिनियमों में किए गए बदलाव भी हटा दिए गए थे. बहरहाल,चुनावी बांड के रूप में अलग-अलग स्रोतों से धन लेने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है और लोकतंत्र बचाने के लिहाज से इसे उम्मीद की एक किरण के तौर पर देखा जा सकता है.यों चंदा लेने के नाम पर चल रही इस व्यवस्था पर तमाम सवाल उठते रहे और इस पर रोक लगाने की मांग भी होती रही. साथ ही इसकी संवैधानिकता के संदर्भ में भी स्थिति स्पष्ट किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही थी. अब सर्वोच्च न्यायालय ने साफ तौर पर चुनावी बांड की व्यवस्था को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है. अदालत ने यह व्यवस्था दी है कि चुनावी बांड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है और इसके सहारे राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को ब?ावा मिल सकता है.
पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और आयोग इस जानकारी को इकतीस मार्च तक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा. दरअसल, एक विचित्र तर्क यह भी दिया जा रहा था कि चुनावी बांड की व्यवस्था के जरिए भ्रष्ट तरीके से जमा किए जाने वाले धन पर काबू पाया जा सकता है. जबकि इसमें जिस स्तर पर पारदर्शिता की अनदेखी की जाती रही, वह अपने आप में भ्रष्टाचार को ब?ावा देने का एक परोक्ष तरीका रहा है.भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाने वाली ज्यादातर पार्टियों को भी इससे कोई गुरेज नहीं था कि चंदे के रूप में धन का गोपनीय तरीके से लेनदेन हो.दरअसल, इस योजना के तहत आम लोगों को यह पता नहीं चल पाता था कि किसने कितने रुपए के बांड खरीदे और किस पार्टी को दिए.हालांकि संबंधित बैंक के पास इसका पूरा ब्योरा होता था कि कितने बांड किसने खरीदा और किस पार्टी को दान में दिया.ये सवाल भी उठे कि चुनावी बांड के जरिए चंदा देने वाले की पहचान चूंकि गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे भ्रष्ट तौर-तरीकों से हासिल धन को ब?ावा मिल सकता है. इसकी एक आलोचना यह भी थी कि यह योजना ब?े कारपोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद के लिए बनाई गई थी.बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट का फरवरी में दिया फैसला और सोमवार को स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को लगाई गई फटकार लोकसभा चुनाव के पहले पारदर्शिता सुनिश्चित करने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है.दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक महत्त्व का और याद रखने लायक कहा जा सकता है.