नई दिल्ली, 28 दिसंबर (वार्ता) भारतीय क्रिकेट को शनिवार को एक नया सितारा मिल गया जब हैदराबाद 21 वर्षीय बल्लेबाज नितीश रेड्डी ने शनिवार को मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड (एमसीजी) में शानदार शतक के साथ अपना नाम क्रिकेट के इतिहास में दर्ज करा लिया।
नितीश की आज की पारी कई मायनों में वर्षाें तक याद रखी जायेगी। वह उस समय क्रीज पर आये जब भारतीय टीम फालोआन के संकट से घिरी हुयी थी और आस्ट्रेलिया के खतरनाक गेंदबाजी आक्रमण के समक्ष उसके शीर्ष बल्लेबाज आत्मसमर्पण कर पवेलियन लौट चुके थे। नितीश ने उन नाजुक पलों का साहस के साथ सामना किया और नाबाद 105 रन की पारी से भारतीय क्रिकेट की अडिग भावना का प्रदर्शन किया।
सात विकेट पर 221 रन पर क्रीज पर उतरते हुए रेड्डी की पारी धैर्य और लालित्य में एक मास्टरक्लास थी। यह युवा खिलाड़ी 114वें ओवर में स्कॉट बोलैंड को मिड-ऑन पर चौका लगाकर शानदार अंदाज में अपने मील के पत्थर तक पहुंचा। गेंद के बाउंड्री लाइन के पार पहुंचते ही दर्शक दीर्घा में मौजूद नितीश के पिता ने भावुक अंदाज में हाथ जोड़ कर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का इजहार किया।
शतक पूरा होते ही रेड्डी ने पिच पर घुटने टेके, बल्ला ज़मीन पर रखा और हेलमेट ऊपर उठा कर अपनी इस उपलब्धि का विनम्र भाव से जश्न मनाया। इसके साथ ही 21 साल और 214 दिन की उम्र में रेड्डी ऑस्ट्रेलियाई धरती पर पहला टेस्ट शतक बनाने वाले तीसरे सबसे कम उम्र के भारतीय बन गए।
इससे पहले सचिन तेंदुलकर ने 1992 में सिडनी में और ऋषभ पंत 2019 में सिडनी में यह कारनामा कर चुके हैं। वॉशिंगटन सुंदर (50) के साथ रेड्डी की साझेदारी ने आठवें विकेट के लिए 149 महत्वपूर्ण रन जोड़े, जो एमसीजी में भारत के लिए एक रिकॉर्ड-ब्रेकिंग स्टैंड था। इस पारी में रेड्डी ने एडिलेड (2008) में अनिल कुंबले के 87 रन को पीछे छोड़ते हुए ऑस्ट्रेलिया में नंबर आठ या उससे नीचे बल्लेबाजी करते हुए किसी भारतीय द्वारा बनाए गए सर्वोच्च स्कोर का दावा किया।
यह उपलब्धि भारत के नंबर आठ और नंबर नौ द्वारा ऑस्ट्रेलिया में एक ही पारी में 50 से अधिक स्कोर करने का केवल दूसरा उदाहरण है। इससे पहले 2008 में एडिलेड में कुंबले और हरभजन सिंह यह करने में सफल हुये थे।
क्रिकेट पंडितों और प्रशंसकों ने युवा बल्लेबाज की धैर्य, तकनीक और स्वभाव की सराहना की है, और दबाव में विश्वस्तरीय गेंदबाजी आक्रमण के सामने अच्छा प्रदर्शन करने की उनकी क्षमता की प्रशंसा की है।.
ऑस्ट्रेलिया में भारत का इतिहास निचले क्रम के यादगार योगदानों से भरा पड़ा है, जिसमें मेलबर्न (1991) में किरण मोरे के नाबाद 67 रन से लेकर जडेजा के वीरतापूर्ण प्रयास तक शामिल हैं। रेड्डी की पारी अब इस शानदार सूची में शामिल हो गई है, जो टीम के कभी न हार मानने वाले रवैये का प्रमाण है।
जैसे-जैसे श्रृंखला आगे बढ़ेगी, रेड्डी के शतक को न केवल एक ऐतिहासिक पारी के रूप में बल्कि आशा और लचीलेपन के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा। भारतीय क्रिकेट के लिए, यह एक नए सितारे के उद्भव का प्रतीक है, जिसकी चमक आने वाले वर्षों में फीकी नहीं पड़ने वाली है।