वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत हमें ढूंढने ही होंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को देश के सबसे बड़े ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट को लोकार्पित किया. इस प्रोजेक्ट के पूरे होने पर प्रदेश को करीब 600 मेगावाट बिजली मिलेगी. इस पावर प्लांट के बन जाने से 12 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को रोका जा सकेगा.यह ओंकारेश्वर के जलाशय में बनाया जा रहा है. इसका निर्माण दो फेस में होना है.पहले फेस का काम पूरा हो गया है. यह भी महत्वपूर्ण है कि खंडवा जिले में ही हाइड्रोलिक, थर्मल पावर और सोलर पावर प्रोजक्ट हैं. ये देश में ऐसा स्थान होगा जहां पर करीब 5000 मेगावाट बिजली बनाई जाएगी. इसके साथ ही यहां पॉवर टूरिज्म को भी बढ़ावा दिया जाएगा. यहां पर लोग देख सकेंगे कि कैसे हाइड्रोलिक थर्मल पावर और सोलर पावर प्रोजेक्ट काम करते हैं. जाहिर है पर्यावरण संतुलन और ग्लोबल वार्मिंग के मामले में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत केवल भाषण बाजी नहीं कर रहा है, बल्कि वास्तव में ग्रीन ऊर्जा पर हमारे देश में बहुत काम हो रहा है. दरअसल यह बहुत जरूरी है. जिस तरह से बिजली, पानी, सडक़ को आधारभूत संरचना की अवधारणा में महत्वपूर्ण माना जाता है. उसी तरह पर्यावरण संरक्षण को भी हमारी मूलभूत आवश्यकताओं में माना जाना चाहिए.आज पृथ्वी का तापमान डेढ़ से दो प्रतिशत तक बढ़ चुका, इससे हमारे देश का मौसम चक्र बुरी तरह गड़बड़ा गया है.अब कभी बेमौसम वर्षा होती है, तो कभी सर्दी के दिन बढ़ जाते हैं.जिस मौसम चक्र को संतुलन में लाने में हजारों वर्ष लग गए, उसे गड़बड़ाने में मात्र सौ- डेढ सौ वर्ष से अधिक का समय नहीं लगा.अत: यह बहुत बड़े खतरे की घंटी है. यह जाना माना तथ्य है कि सबसे अधिक कार्बन की मात्रा कोयला,तेल और गैस में होती है. अत: हमे वातावरण में इन तीनों की मात्रा कम करनी होगी.पहले हमे इस तरह का कचरा कम करना होगा. हर परिवार को घरेलू बिजली खर्च में 20 फीसदी तक कटौती करनी होगी क्योंकि बिजली भी ऊर्जा है. घरों में बड़े- बड़े दरवाजे के फ्रिज के बजाय छोटे फ्रिज का इस्तेमाल करना होगा.छोटी दूरी के लिए पेट्रोलियम वाहनों का इस्तेमाल नहीं करे जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होगा. दरअसल, उपभोक्तावादी संस्कृति के चलते आज धरती पर 52 फीसदी कचरा बढ़ गया है जिसमे कार्बन, मीथेन आदि है. आज वातावरण में वर्ष भर में जितना दिखने वाला कचरा नहीं निकलता है, उससे कई सौ गुणा अधिक नहीं दिखने वाला कचरा निकलता है.इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. दुनिया के 103 देशों ने वर्ष 2030 में 2020 की तुलना मे मीथेन उत्सर्जन को 30 प्रतिशत कम करने के लिए वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किए थे.मीथेन इतनी खतरनाक गैस है कि जिसमें 20 वर्ष की अवधि में कार्बन डाइ ऑक्साइड की तुलना में 86 गुणा अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता है. इन खतरनाक परिणामों से बचने के लिए वैश्विक उत्सर्जन में तेजी से गिरावट करनी होगी.बहरहाल,भारत दुनिया के गर्म देश में आता है. यहां सूरज की उपलब्धता लगभग 10 महीने बनी रहती है. ऐसे में सोलर ऊर्जा की दृष्टि से बहुत काम किया जा सकता है. यह संतोषजनक है कि केंद्र सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रही है. सरकारी स्तर पर जो काम किया जा सकता है वह किया जा रहा है लेकिन आम जनता को भी इसमें सरकार की मदद करनी होगी. हमारी जीवन शैली पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए. छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देकर हम काफी ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन को बचा सकते हैं. इसी के साथ इस बात की भी जरूरत है कि हमारे स्कूली पाठ्यक्रम और महाविद्यालयीन सिलेबस में भी पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिंग की दृष्टि से कोर्स होने चाहिए. सामाजिक , सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थाओं को भी इस मामले में जन जागरण करना होगा तभी स्थिति में सुधार होगा.

 

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