बिना रेट सूची चस्पा किए बिक रही शराब, आबकारी महकमा ठेकेदारों पर मेहरवान

महंगी शराब बेचकर आबकारी अधिकारी, पुलिस और ठेकेदार करेंगे करोड़ की कमाई, ठेकेदार प्रिंट रेट से अधिक दामों में बेच रहें शराब

सिंगरौली :सत्ता परिवर्तन के बाद मोहन सरकार ने शराब के मामले में कुछ ज्यादा ही कड़े तेवर अख्तियार किया है। पर सरकार के आदेश के बाद भी सिंगरौली में व्यवस्था नहीं बदली। आज भी महंगे दामों में शराब बिक रही है। आबकारी विभाग सहित जिम्मेदार मूकदर्शक बने हुए हैं।सरकारी शराब दुकान के ठेकेदार आबकारी नीति के विरुद्ध बिना रेट सूची लगाए प्रिंट रेट से भी अधिक दामों में शराब की बिक्री की जा रही है। शराब बिक्री में दामों को लेकर कई बार ग्राहक एवं दुकानदार के बीच बाद विवाद की नौबत बनी रहती है। इसके बावजूद भी आबकारी विभाग सिर्फ खानापूर्ति में जुटा है।

चर्चा है कि प्रिंट रेट से अधिक दामों पर शराब बिक्री कर शराब ठेकेदार करोड़ों की अवैध कमाई करेंगे। इस अवैध कमाई में आबकारी अधिकारी पुलिस बराबर के हिस्सेदार है। गौरतलब हैं कि जिले भर के खुदरा दुकानों में खुलेआम प्रिंट रेट से अधिक दर में शराब-बीयर बेची जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिमाह लगभग 12 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली खुदरा दुकानदारों द्वारा की जा रही है। प्रिंट रेट से प्रति बोतल 20 से लेकर 40 रुपये तक अधिक वसूले जा रहे हैं। जिले में प्रिंट रेट से अधिक दर पर शराब बेचे जाने की शिकायत के बाद उत्पाद आयुक्त ने सभी शराब दुकान के बाहर कीमत को लेकर डिस्प्ले बोर्ड लगाने का निर्देश दिया था। लेकिन जिले की दुकानों ने डिस्प्ले बोर्ड नहीं लगाया। जिले में करीब 2 साल से सरकारी शराब के ठेके की दुकानों में रेट लिस्ट नहीं लगाई गई है। इस बात की जानकारी आबकारी अधिकारी को भी है। इसके बावजूद ठेकेदारों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।
खुलेआम हो रहा शराब का अवैध कारोबार
जिले में 47 देशी-विदेशी शराब की दुकानों से शराब हो या बियर की बॉटल सब में प्रिंट रेट से अधिक रेट में खुले आम शराब बेची जा रही हैं। वहीं दूसरी क्षेत्र में शराब का अवैध कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। ग्रामीण अंचलों में खुलेआम शराब बेची जा रही है। आबकारी विभाग की अनदेखी से नगर से लेकर आसपास के गांवों तक शराब का अनाधिकृत कारोबार फल-फूल रहा है।
आबकारी अधिकारी का रहता है कमीशन
सरकारी शराब ठेके की दुकानों में एमआरपी से अधिक कीमत पर शराब बेची जाती है। अधिक वसूली के चलते आए दिन उत्पाद दुकानों पर तूतू-मैंमैं होती रहती है। खरीदनी शराब है, इसलिए कुछ लोग बात आगे नहीं बढ़ाते हुए लोक-लाज के चलते अधिक कीमत देकर वहां से खिसकना ही जरूरी समझते हैं। एक दुकानदार का सेल्समेन नाम न छापने के शर्त पर बताया कि नीचे से ऊपर तक सब का रेट फिक्स रहता है। सूत्रों की माने तो शराब ठेकेदारों को कमीशन देना रहता है। ऐसे में यदि वह एमआरपी रेट से अधिक दाम पर शराब नहीं बेचेंगे तो उन्हें घाटा होगा । लिहाजा ठेकेदार दुकानों में रेट लिस्ट नहीं लगाते।

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