सियासी योद्धाओं की सांसद बनने से हसरत रह गई अधूरी
डा0 रवि तिवारी
रीवा:राजनीति में कब किसकी किस्मत चमक जाय, कब कौन माननीय बन जाय यह कोई नही जानता. रीवा की सियासत में कई उलट फेर हुए और रिमही जनता ने जिसको चाहा उसे सांसद-विधायक बना दिया और जब चाहा तो किनारे लगा दिया. राजनीति के पुरोधाओं को विधानसभा के चुनाव में जनता का आशीर्वाद तो मिला लेकिन जब लोकसभा के मैदान में उतरे तो उन्हे जनता ने नकार दिया.विंध्य की राजनीति सबसे अलग है हमेशा रही है, यहां राजनीति में नये-नये चमत्कार होते रहे हंै. रिमही जनता इतिहास रचने में माहिर है. यह जनता कई बार बता चुकी है कि सियासत किसी की बपौती नहीं है. जन कल्याण के लिये जो भी नेता काम करेगा, जनता उसे पलकों पर बैठायेगी. लेकिन अवसरवादी एवं स्वार्थपरक राजनीति करने वालो को सबक सिखाना भी यह रिमही जनता बखूबी जानती है.
अक्सर देखा गया है कि चुनाव जीतने के बाद नेताओं का चाल-चरित्र बदलने में देर नही लगती है. जनता का भी अपना मूड होता है, कोई जरूरी नही है कि जनता ने जिसे एक बार अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया है उसे बार-बार चुनती रहे? जनता ने यह अनुबंध नही कर रखा होता है कि जिसे विधायक चुना था उसे सांसद भी बनायेगे? या फिर जिस नेता को सांसद पद के लिये चुना है उसे विधायक का भी वह चुनाव जितायेगी? जिले के कई ऐसे नेता रहे है जिन्हे जनता-जनार्दन ने विधानसभा के चुनाव में तो भरपूर आर्शीवाद दिया किन्तु लोकसभा चुनाव में नकार दिया. परिणाम स्वरूप उन नेताओं की सांसद बनने की हसरत अधूरी रह गई.
संसद भवन तक नही पहुंच पाये
जिले की राजनीति के कई ऐेसे पुरोधा रहे है जिन्हे जननायक कहा जाता था और जनता ने उन्हे कई बार अपना विश्वास मत सौंप कर विधानसभा भेजा, लेकिन जब उन्हे लोकसभा में उम्मीदवार बनाया गया तब जनता ने उन्हे चुनाव हरा दिया. जनता के आर्शीवाद ने उन्हे विधानसभा तो पहुंचाया लेकिन संसद भवन नही पहुंचने दिया. नतीजतन सांसद बनने की उनकी हसरत अधूरी ही रह गई? ऐसे सियासी पुरोधाओ में पंडित श्रीनिवास तिवारी का नाम शीर्ष पर है. विधानसभा क्षेत्र मनगवां से 5 बार, त्योंथर से 2 बार विधायक रहे श्री तिवारी को कांग्रेस ने वर्ष 1991 में रीवा लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था. श्री तिवारी यह चुनाव बसपा प्रत्याशी भीम सिंह से हार गये. श्री तिवारी के अलावा जगदीशचन्द्र जोशी, सीता प्रसाद शर्मा, शिवनाथ पटेल, रामलखन शर्मा, रामलखन सिंह, पुष्पराज सिंह, लक्ष्मण तिवारी, प्रदीप कुमार पटेल भी विधायक तो चुने गये किन्तु लोकसभा का चुनाव हार गये थे.
रीवा विधानसभा सीट से वर्ष 1952 एवं 1957 में विधायक निर्वाचित होने वाले समाजवादी नेता जगदीशचन्द्र जोशी वर्ष 1971 में रीवा से लोकसभा का चुनाव लड़े थे. यह चुनाव रीवा महाराजा मार्तण्ड सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था. रीवा महाराजा कांग्रेस(जगजीवन) के प्रत्याशी शंभूनाथ शुक्ल से रिकार्ड मतो से चुनाव जीते थे. वर्ष 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर सिरमौर सीट से विधायक चुने गये सीता प्रसाद शर्मा ने वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में भी जनता पार्टी की ही टिकट पर भाग्य आजमाया था किन्तु भाग्य उन्हे दगा दे गया. वर्ष 1957 में गुढ़ विधायक चुने गये जनसंघ के शिवनाथ पटेल वर्ष 1984 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के रण में उतरे थे किन्तु उनके खाते में पराजय आई थी. इसी प्रकार रामलखन शर्मा (माकपा) सिरमौर क्षेत्र से 3 बार विधायक चुने गये थे किन्तु लोकसभा के चुनाव में नकार दिये गये. श्री शर्मा वर्ष 1990, 1993 एवं 2003 में विधायक रहे है और उन्होने 1998 में माकपा की टिकट पर रीवा लोकसभा का चुनाव लड़ा था.
रामलखन सिंह (जनता दल) सन् 1993 में त्योंथर सीट से विधायक चुने गये थे और उन्होने वर्ष 1996 का लोकसभा चुनाव भी जनता दल की ही टिकट पर लड़ा था किन्तु पराजित रहे. रीवा राजघराने के पुष्पराज सिंह वर्ष 1990, 1993, 1998 में रीवा सीट से विधायक चुने गये थे. उन्होने 2009 में लोकसभा का चुनाव सपा की टिकट पर लड़ा था किन्तु साइकिल पंक्चर होने के कारण श्री सिंह चौथे पायदान पर रहे है. इनके अतिरिक्त प्रदीप कुमार पटेल जो लगातार दो बार से मऊगंज क्षेत्र से विधायक है ने भी सन् 2004 में बसपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था किन्तु पराजय का मुंह देखना पड़ा. वर्ष 2008 में उमाश्री भारती की पार्टी भारतीय जनशक्ति की टिकट पर मऊगंज सीट से विधायक चुने गये लक्ष्मण तिवारी ने लोकसभा के तीन चुनाव लड़े थे. उन्होने वर्ष 1996, 1998 एवं 1999 में लोकसभा के मैदान में ताल ठोंकी थी किन्तु हर बार उन्हे शिकस्त मिली थी. दोबारा विधानसभा चुनाव में भी विफल रहे है.