पटना, 16 नवंबर (वार्ता) पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि शारदा सिन्हा सच्चे अर्थों में संगीत साधना की देवी और भारतीय लोकगीत परम्परा की अनुपम उदाहरण थीं।
श्री कोविंद ने एक समारोह में बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा सच्चे अर्थों में संगीत साधना की देवी थीं। मैं बिहार में एक दीक्षांत समारोह में आया था। मुझे सूचना मिली तो यहां आए बिना न रह सका। जब वे पहली बार राजभवन में मिलीं तो उन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया। शिक्षा जगत की भद्र महिला के रूप में उनकी पहचान है। वह काफी संवेदनशील थीं। उन्होंने सेवाओं से संबंधित कठिनाइयां मुझसे साझा की थीं। मैंने उचित प्रक्रिया का पालन किया। मुझे पता चला कि यदि उनकी सेवा को नियमित नहीं किया गया तो 36 साल के बाद उन्हें सेवानिवृत्ति का लाभ नहीं मिलेगा। उनके साथ साथ अन्य कई शिक्षकों को लाभ मिला। मुझे खुशी है कि उनके लिए कुछ कर सका। इससे ज्यादा खुशी थी कि उच्च शिक्षा के लिए कार्यरत शिक्षकों के साथ न्याय हो सका। यह संयोग है कि मेरे हाथों से उन्हें सम्मान मिला जबकि पद्म भूषण की घोषणा पहले ही हो चुकी थी। यह मेरा सौभाग्य था कि संगीत विद्या की आराधिका को सम्मानित करने का मौका मिला। वे भारतीय लोकगीत परम्परा की अनुपम उदाहरण थीं।
श्री कोविंद ने कहा, शारदा सिन्हा जी छठ का पर्याय थीं। उनके लोकगीतों ने बिना छठ पर्व अधूरा है। मॉरीशस की एक घटना की याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि वे कार में बैठी थीं उस कार का चालक उनका ही छठ गीत बजा रहा था। यह अनायास हो रहा था। चालक से पूछने पर बताया कि भारत की महान गायिका शारदा जी का गीत है। शारदा जी ने जब अपनी पहचान बताई तो भावुक हो गया। शारदा जी को सबने देखा कम, सुना ज्यादा। छठ व्रत में हमारी बहनें शारदा जी की तस्वीर सामने रखकर छठ कर थीं। उनका संकल्प, अप्रतिम साधना, उनके गीत हमारे बीच हैं। उन्हें राष्ट्रीय और राजकीय सम्मान मिले। वे सच में महान थीं। अपनी गायन कला के प्रति प्रेम यह कि अंतिम सांस तक गुनगुनाती रहीं।