अलग होती है हर रूप की पहचान
संगीत के सभी रूपों की अलग-अलग पहचान होती है। जैसे शास्त्रीय संगीत को पहचानने के लिए सुरों के गणित को समझना पड़ता है। उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, दादरा, टप्पा आदि को शामिल किया जाता है। इसका उद्देश्य भाव निमिर्त करना होता है। सुगम संगीत में गीत, गजल, भजन आदि शामिल होते हैं। इसमें शब्दों पर फोकस किया जाता है। इसमें शब्दों और संगीत के तारतम्य पर ध्यान दिया जाता है। संगीत सुरों का अपना औरा होता है। इसी से आवाज में चमक पैदा होती है। इसके लिए सांसों पर नियंत्रण आवश्यक है।
इस दौरान डॉ. चेतना पाठक ने राग भैरव, तीन ताल में हे आदि देव शिव शंकर ..की मनमोहक प्रस्तुति दी। उनके साथ छात्र- छात्राओं ने भी सुर मिलाया। इसके अलावा उन्होंने ताल के रियाज, रागांग आदि विषयों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। उनके साथ हारमोनियम पर विवेक जैन, तबले पर पांडुरंग तैलंग, तानपुरे पर सलोनी भदौरिया ने संगति की।
इस अवसर पर संगीत रसिकों में वनस्थली विद्यापीठ से आए डॉ. संतोष पाठक सहित अनूप मोघे आदि मौजूद रहे। विश्वविद्यालय की ओर से कुलसचिव प्रो. राकेश कुशवाह, वित्त नियंत्रक डॉ आशुतोष खरे, डॉ. मनीष करवड़े, डॉ. हिमांशु द्विवेदी, डॉ. श्याम रस्तोगी, पीआरओ कुलदीप पाठक सहित विवि के सभी संगतकार, कर्मचारी और छात्र- छात्राएं मौजूद रहे। कायर्क्रम का संचालन डॉ. पारूल दीक्षित ने व अंत में आभार डॉ. विकास विपट ने व्यक्त किया।