- कच्चे शमशान पर जुटे लोग, मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने परंपरा का किया जिक्र
उज्जैन। सम्राट विक्रमादित्य के जमाने से ही पाड़ों की लड़ाई चलती आई है। परंपरा के अनुसार रविवार भाई दूज पर भी पाड़ों की लड़ाई का आयोजन वृहद पैमाने पर किया गया। जिसे देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुटी।
रविवार को भाई दूज पर्व पर नीलगंगा थाना क्षेत्र के अंतर्गत पाड़ों की लड़ाई का आयोजन हुआ। जहां करीब दर्जन भर से अधिक जोड़ी पाड़ों की लाई हुई। इस दौरान दूर-दूर से आये लोगों ने इसका लुत्फ उठाया। नीलगंगा थाने के पास में ही यह स्थान है जहां पर हर वर्ष पाड़ों की लड़ाई की जाती है।
यादव परिवार इस पाड़ों की लड़ाई का आयोजन बड़े पैमाने पर करता आया है। धीरे-धीरे दूसरे समाजजन भी जुड़ते गए, जो किसान गाय, पाड़े, बैल आदि रखते हैं वह इस खेल में ज्यादा रुचि रखते हैं। आयोजन कई सालों से किया जा रहा है। जब मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे तब लोगों के लिए यही मनोरंजन का जरीया था,जो कि आप परंपरा बन चुका है।
आज आधुनिक युग में भी सदियों पुरानी यह परंपरा निभाई जा रही है। उसी के तहत दिवाली के बाद पडऩे वाली यम द्वितीया पर यहां लड़ाई का आयोजन किया जाता है। प्रतिबंध के बाद भी थाने से 100 मीटर दूर ही लड़ाई होती है। हिंदूवादी नेता रुपेश ठाकुर ने बताया कि हमारी परम्परा के चलते यहां आयोजन होता है और आगे भी जारी रहेगा।
मुख्यमंत्री इशारों में बता गए लड़ाई का महत्व
पाड़ों को नहला रहे हैं, दौड़ा रहे हैं घी पिला रहे हैं काजू-बादाम खिला रहे हैं पता ही नहीं चल रहा पाड़े दौड़ रहे हैं कि मनुष्य दौड़ रहे हैं। यही तो सनातन संस्कृति है, परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है इंदौर गेट वाले और दूसरे क्षेत्र के हमारे पुराने साथी इस लड़ाई का आनंद आम जनता को दे रहे हैं। मुख्यमंत्री जब गोवर्धन पूजन पर उज्जैन आए थे तो उन्होंने गाय से लेकर पाड़ों की लड़ाई के महत्व के बारे में बताते हुए यह बात कही। बड़े प्रेम भैया छोटे प्रेम भैया कमल काका राम भैया इंदौर गेट वाले का नाम लेते हुए डॉ. यादव ने कहा कि कच्चे श्मशान पर गोवर्धन पूजा के बाद जो धूमधाम होती है वह आनंददायक है।
जो काटते हैं उन पर कार्रवाई नहीं
नवभारत से चर्चा में हिंदूवादी नेता रूपेश ठाकुर ने बताया कि पाड़ों की लड़ाई जो होती है, वह सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा का हम निर्वहन कर रहे हैं। हमारे बुजुर्गों ने जो शुरुआत की है उसी को हम आगे बढ़ा रहे है। जो लोग पाड़े काटकर खाते हैं, उन पर कोई पशु क्रूरता अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं होती और लड़ाने वाले लोगों पर कार्रवाई की जाती है।