पटना, 02 नवंबर (वार्ता) बिहार में गोवर्धन पूजा का त्योहार आज धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को यह पूजा करने से व्यक्ति पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा सदैव बनी रहती है। इस दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।गोवर्धन पूजा के दिन घर में किसी जगह ज्यादातर आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत, गायों और ग्वालों की आकृति बनाकर पूजा-अर्चना की जाती है।साथ ही परिक्रमा कर छप्पन भोग का प्रसाद बांटा जाता है। इस दिन अन्नकूट बनाने का भी खास महत्व है, इसलिए इसे ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर कर बृजवासियों की रक्षा की थी, इसलिए इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है।
गोवर्धन पूजा पर गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन मंदिरों में श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से विशेष फल प्राप्त होता है। लोग घरों में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही और दीप जलाकर पूजा अर्चना करते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन गायों की पूजा भी की जाती है। फिर गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारकर प्रदक्षिणा कीजाती है।
गोबर से गोवर्धन की आकृति तैयार करने के बाद उसे फूलों से सजाया जाता है और इसकी पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, दूध नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे का इस्तेमाल किया जाता है। कहा जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन, लोग घरों में प्रतीकात्मक तौर पर गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं और उसकी परिक्रमा करते हैं।गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा।गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गोवर्धन पूजा के दौरान विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते हैं। लोग घरों में गोवर्धन पूजा के दिन पूजा-अर्चना के बाद अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया,भारतीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर एक पीढ़ी से दूसरी और दूसरी से तीसरी पीढ़ी में प्रवाहित हो रही है। इसी में गोवर्द्धन पूजा भी शामिल है। वृन्दावन में स्थित गोवर्द्धन पर्वत स्वयं नारायण का स्वरूप है। सनातन धर्मावलंबी आज शनिवार को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोबर के गोवर्द्धन बनाकर पीला फूल, अक्षत, चंदन, धुप-दीप से उनकी पूजा करेंगे।गोवर्द्धन पूजा पर इस दिन गौशाला में गाय को स्नान कराकर उनको नए वस्त्र, रोली चंदन, अक्षत, पुष्प से पूजा के बाद हरी घास, भूषा, चारा, गुड़, चना, केला, मिठाई खिलायी जाएगी I गौ की सेवा करने से कई तीर्थों में स्नान के समान पुण्य मिलता है।
श्री झा ने बताया कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा में विशाखा नक्षत्र व आयुष्मान योग में गोवर्द्धन पूजा मनायी जाएगी। प्रतिपदा तिथि आज शनिवार की रात्रि 07:10 बजे तक है। श्रद्धालु इस दिन गाय के संवर्धन के संकल्प लेते हुए विधि-विधान से उनकी पूजा एवं सेवा करेंगे। गोवर्द्धन पूजा के दिन नारायण प्रभु की शरणागति करने से जातक का सर्वदा कल्याण होता है। गोवर्द्धन की पूजा करने से श्रद्धालु को आर्थिक व समृद्धि का लाभ होता है I आज अन्नकूट भी है, इसीलिए आज श्रीहरि की पूजा के बाद 56 भोग लगाया जाएगा। उन्होंने बताया कि गोवर्द्धन पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्द्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर इंद्रदेव का घमंड तोड़ा था तथा ब्रजवासियों की रक्षा किए थे । इससे उन्होंने से लोगों को प्रकृति की सेवा व संवर्धन का संदेश दिया था। तभी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्द्धन की पूजा होती है एवं अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
प्राचीन धर्म ग्रन्थों के मुताबिक, गोवर्धन पूजा द्वापर युग से चली आ रही है। इसके पीछे मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी।महिलायें घर के आंगन में गोवर्धन बनाकर पूजा करती हैं। इस दिन गोवंश की सेवा का विशेष महत्व है। इसलिए लोग बैल,गाय सहित अपने वाहनों की भी पूजा करते हैं। गाय-बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है और उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है।
गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
गोवर्धन पूजा को लेकर कहानी है कि जब भगवान कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं। उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं। भगवान श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलयके समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी।भगवान इंद्र को जब पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं तो उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। भगवान कृष्ण ने कहा था कि गोवर्धन पर्वत गौधन का संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए, गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए और तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।