रूस के कजान शहर में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत बहुत बड़ी और स्वागत योग्य घटना है. यह भी सही है कि इस वार्ता से पूर्व चीन और भारत के बीच सीमा विवाद के एक हिस्से को लेकर समझौता भी हुआ है. निश्चित रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि चीन भारत के साथ सकारात्मक संबंध बनाने का इच्छुक है. भारत और चीन के बीच वर्षों से जमी बर्फ पिघली भी है, लेकिन हमारे देश को चीन से सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि अतीत में चीन कभी भी भरोसे के काबिल साबित नहीं हुआ है. जाहिर है भारत को चीन के साथ संबंध आगे बढ़ते समय सावधानी रखनी पड़ेगी. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच यह बैठक काफी अहम है क्योंकि भारत और चीन ने सोमवार को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पेट्रोलिंग यानी गश्त को लेकर एक समझौते पर पहुंचने की घोषणा की थी. यह चार साल से अधिक समय से चले आ रहे सैन्य गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है. इससे पहले मंगलवार को पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात हुई थी. ब्रिक्स में पीएम मोदी, पुतिन और जिनपिंग की तिकड़ी पर पूरी दुनिया की नजर थी. कहना पड़ेगा कि चीन, रूस और भारत की एक मंच पर मौजूदगी पश्चिमी दुनिया को एक बड़ा संदेश देने में सफल हुई है. बहरहाल, जून 2020 में हुए गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्तों में एक बर्फ सी जम गई थी. यहां तक कि दोनों देश द्विपक्षीय बातचीत करने से भी परहेज कर रहे थे. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात से दुनिया में यह संदेश गया है कि दोनों देश बातचीत के जरिये अपने मतभेदों को सुलझा सकते हैं.यह घटनाक्रम उस विश्वास को भी मजबूती देगा, जिसमें कहा जा रहा है कि मोदी और शी जिनपिंग यूक्रेन-रूस संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि यह उम्मीद करना जल्दबाजी ही होगी कि भारत-चीन सीमा पर जमीनी हालात जल्द ही सामान्य हो जाएंगे.भारत को भी गहरे तक इस बात का अहसास है कि बीजिंग को सीमा समझौतों की अवहेलना करने की आदत है.ऐसे में भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है.
अतीत में चीन भारतीय सीमाओं में अतिक्रमण की कोशिश करता रहा है. इसके अलावा अभी भी डेपसांग और डेमचोक के टकराव वाले बिंदुओं से चीनी सैनिकों की वापसी नहीं की गई है.अतीत में भारत ने चीनी हठधर्मिता के कई मामले देखे भी हैं. एक ओर चीन बातचीत से समस्या के समाधान की दुहाई देता है तो दूसरी ओर एलएसी के निकट बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करता रहा है.ऐसे में भारत को भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करने को बाध्य होना पड़ा.भारत सरकार और रक्षा बलों को चाहिए कि एलएसी पर हर गतिविधि पर कड़ी नजर रखें.अतीत में भी हमने चीन पर भरोसा करने की कीमत चुकाई है. जिसके जख्म देश महसूस करता रहा है.वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार को भी चाहिए कि सीमा की वास्तविक स्थिति से देश को अवगत कराते रहें.
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा बेहद सफल रही है. भारत दो महा शक्तियों (अमेरिका और चीन) के बीच एक शक्ति संतुलन बिंदु के रूप में उभरा है. इसी के साथ एक बार फिर जाहिर हुआ कि रूस हमारा वास्तव में भरोसेमंद मित्र है. जो हर हाल में हमारे साथ खड़ा है.