इंदौर: आईडीए में लाखों रुपए वीआईपी कल्चर के लिए बर्बाद कर दिए गए. सीधे बोर्ड रूम में जाने के लिए 25 खर्च कर वीआईपी लिफ्ट लगाई गई है. लिफ्ट का उपयोग बोर्ड अध्यक्ष के अलावा कोई नहीं कर सकता है.आईडीए में कॉरपोरेट घरानों की संस्कृति हावी होती जा रही है. 25-50 लाख रुपए तो कुछ मायने ही नहीं रखते है. नित नए तरीके से साज सज्जा का काम चलता रहता है. हद तो तब हो गई कि अध्यक्ष मोहदय को कर से उतरते ही लिफ्ट चाहिए थी. वे दस पंद्रह कदम पैदल नहीं चलन उचित नहीं समझते थे. बोर्ड बैठक में अनावश्यक स्वयं के लिए नई लिफ्ट का प्रावधान करवा दिया.
उन्होंने कार से उतरते ही दो कदम पर नई लिफ्ट लगाने का फरमान सुनाया दिया. अधिकारी क्या करते? सत्ता के लोग, जो बोले वो करो. आईडीए के पूर्व अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा को पार्किंग से सीधे अपने और बोर्ड रूम जाने के लिए चलना पड़ता था. चलना भी मात्र दस बारह या पंद्रह कदम, मगर वीआईपी लिफ्ट लगाओ, जिसमें सिर्फ चावड़ा का ही आना जाना होगा. बाकी सारे अधिकारी और कर्मचारी दूसरी लिफ्ट का उपयोग करे.
एक व्यक्ति के लिए 25 लाख की सिर्फ लिफ्ट
आईडीए ने शिडलर कंपनी से 25 लाख रुपए देकर लिफ्ट लगवाई है. इसका स्ट्रख्र का खर्च अलग है। उसमे भी 15 से 20 लाख रुपए अलग खर्च किए गए है. कुल मिलाकर एक व्यक्ति के लिए 50 लाख रुपए बर्बाद कर दिए गए. खास बात यह है कि वे अब आईडीए में किसी पद पर नहीं है भूतपूर्व हो चुके है.
पहले से है तीन लिफ्ट
आईडीए कार्यालय में पहले से ही तीन लिफ्ट लगी हुई है। इसमें से दो लिफ्ट अन्य विभागों के कार्यालय के कारण 9 मंजिल तक आती जाती है। आईडीए के लिए अलग से लिफ्ट है, जिससे सिर्फ आईडीए के अधिकारी आना जाना करते है. आईडीए की पर्सनल लिफ्ट में एक बार में 13 व्यक्ति जा सकते है. बावजूद इसके वीआईपी के नाम नई लिफ्ट लगाई जाना लाखों रुपए की बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं है.