चुनाव अभियान से गायब हैं बुनियादी मुद्दे !

देश में इन दिनों नों लोकसभा चुनाव का अभियान चल रहा है.पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा. चुनाव प्रचार अभियान देखने से साफ पता चलता है कि इस बार जनता से जुड़े बुनियादी मुद्दे चुनाव से गायब दिख रहे हैं.

हमारा देश मूलत: कृषि प्रधान है, लेकिन किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे चुनाव अभियान का हिस्सा नहीं बन सके हैं. इनकी बजाय दोनों ही पक्ष भावनात्मक और अनावश्यक मुद्दों को उठा रहे हैं. अभी भी हमारे यहां बुनियादी मुद्दों पर आधारित चुनाव नहीं हो पा रहे हैं. दरअसल,इसके लिए सभी राजनीतिक दल दोषी हैं. मध्य प्रदेश की 6 लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होगा. मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां लगभग एक तिहाई संख्या आदिवासियों की है. कृषि यहां का प्रमुख धंधा है. इसके बावजूद किसानों की समस्याएं चुनाव प्रचार से गायब हैं. किसान सरकार की नीतियों और बीती घोषणाओं पर अधूरे अमल से नाखुश हैं. व्यापारी परेशान हैं कि नियम कायदों में व्यापार-कारोबार को उलझा दिया गया है. आम उपभोक्ताओं को साधने के चक्कर में बाजार से जुड़े किसान और व्यापारी दोनों के हितों का नुकसान हो रहा है. हालांकि चुनाव में इन मुद्दों का शोर मचना तो दूर इन पर बात तक नहीं हो रही है.

इंदौर और मालवा क्षेत्र को गेहूं-चने के साथ सोयाबीन उपजाने का गढ़ माना जाता है. खरीफ के सीजन में सोयाबीन के दाम इस साल निम्न स्तर पर रहे. सीजन बीतने के बाद अब तक सोयाबीन के दाम नीचे बने हुए हैं. किसान परेशान हैं कि उन्होंने दाम बढऩे की उम्मीद में उपज संग्रहित रखी, लेकिन अब तक उसके दाम नहीं मिल रहे.रबी में अब गेहूं की फसल आ गई.

पहले ऐलान हुआ था कि गेहूं के दाम 2700 रुपये प्रति क्विंटल दिए जाएंगे. असल में हो ये रहा है कि सरकार ने 2275 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य घोषित किया है. मप्र सरकार ने 125 रुपये इस पर बोनस भी घोषित किया.हालांकि किसान नाखुश हैं. प्रदेश की तमाम कृषि उपज मंडियों में व्यापारी और किसान मंडी बोर्ड के रुख और अव्यवस्था से परेशान हैं. इधर,ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की स्थिति बेहद विकराल है. बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है. ग्रामीण क्षेत्र से पलायन के कारण तीव्र शहरीकरण की स्थिति है, जिसकी वजह से शहरों की हालत खराब है. गर्मी के मौसम में सबसे अधिक समस्या पेय जल संकट को लेकर होती है. शासन और प्रशासन की समूची मशीनरी इस समय चुनाव की तैयारियों में लगी है. ऐसे में पेयजल संकट की तरफ कम ही ध्यान दिया जा रहा है. पर्यावरणविद् और तमाम अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स साफ बता रही हैं कि भविष्य में पेयजल संकट की स्थिति विकराल होने वाली है. बेरोजगारी, महंगाई के साथ ही पर्यावरण संतुलन और भूजल स्तर में वृद्धि जैसे बुनियादी मुद्दे भी चुनाव अभियान का हिस्सा बनना चाहिए. राजनीतिक दल यदि इन मुद्दों को चुनाव अभियान का हिस्सा बनाएंगे तो इससे जन जागरण और अवेयरनेस बढ़ेगी. ग्लोबल वार्मिंग और पेयजल संकट ऐसे मुद्दे हैं जो चुनाव में जरूर उठाने चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को इन मुद्दों पर अपना रूख और वैकल्पिक कार्य योजना के बारे में भी जनता को बताने की जरूरत है. हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई जिसमें दावा किया गया कि दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर की तरह भारत में बेंगलुरु और शिमला शहर जल्दी ही डे जीरो की श्रेणी में शामिल होंगे. दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर को 2018 में डे जीरो घोषित किया था. इसका अर्थ यह है कि केपटाउन में तभी से घरों के नलों में पानी की सप्लाई बंद कर दी गई. अस्पताल जैसी आवश्यक सेवाओं को छोडक़र सभी दूर पानी की सप्लाई नहीं की जा रही है. लोगों को पानी की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ रही है. भारत में इस श्रेणी में अब बेंगलुरु और शिमला जैसे शहर आ गए हैं. मालवा के इंदौर का इस मामले में 18 वां नंबर माना गया है. यानी आने वाले वर्षों में इंदौर भी डे जीरो की श्रेणी में आ सकता है. जाहिर है यह सब अत्यंत चिंता जनक है. इसके लिए हमें अभी से सतर्क होने की आवश्यकता है. वस्तुत: जल संकट जैसे अत्यावश्यक मुद्दों को राजनीतिक दलों ने चुनाव अभियान में जरूर शामिल करना चाहिए जिससे जन जागरण भी हो और जनता को उनके कार्यक्रम के संबंध में भी जानकारी मिले.

 

Next Post

यौन उत्पीड़ित छात्रा के आत्महत्या मामले पर आंध्र सरकार को नोटिस

Wed Apr 3 , 2024
नयी दिल्ली, (वार्ता) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने विशाखापत्तनम में कॉलेज के एक संकाय सदस्य द्वारा छात्रा का यौन उत्पीड़न करने और उसके बाद छात्रा की आत्महत्या पर मंगलवार को आंध्र प्रदेश सरकार और पुलिस को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी। आयोग ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस […]

You May Like