प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूक्रेन दौरे ने अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान आकर्षित किया है. खास तौर पर इस प्रवास की पश्चिमी जगत में काफी चर्चा है. जाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूक्रेन प्रवास की अधिकांश विश्व में प्रशंसा हो रही है. प्रधानमंत्री के यूक्रेन प्रवास से जाहिर है कि भारतीय विदेश नीति में निरंतरता है. यानी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जिस विदेश नीति के नींव रखी थी, उस पर सिर्फ कांग्रेस की ही नहीं बल्कि विपक्ष की भी सभी सरकारें चली हैं. भारत ने हमेशा गुटनिरपेक्ष, तटस्थ और संतुलित विदेश नीति की राह अपनाईं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भी इसी विदेश नीति की निरंतरता को कायम रखा है. दरअसल, प्रधानमंत्री की पिछली रूस यात्रा से पश्चिमी जगत बेचैन हो गया था. विशेष कर अमेरिका और नाटो के देश प्रधानमंत्री की रूस यात्रा से नाखुश थे. अमेरिका ने तो अपनी नाखुशी जाहिर भी कर दी थी.दरअसल, नरेंद्र मोदी का ये महत्वपूर्ण दौरा था. इसके गहन मायने भी हैं,क्योंकि मोदी इसी साल मॉस्को भी गए थे.दरअसल,ये पश्चिमी देशों के लिए एक संकेत है कि भारत एक संतुलित विदेश नीति रखता है.ये एक साहस से भरा कूटनीतिक क़दम है. जब से यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बना है, उसके बाद से यह इस स्तर की पहली यात्रा है. ये वक्त भी ऐसा है जब युद्ध के दौरान, कुछ इलाक़ों पर यूक्रेन के कब्ज़े का दावा है. ऐसा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, पहली बार हुआ है.भारत क्वाड का सदस्य है और इसके बावज़ूद भी वो रूस का साथ देता है. इस यात्रा से एक तरह से यह बताने की कोशिश है कि भारत की विदेश नीति संतुलित है. ये एक तरफ़ संतुलन का प्रयास है तो दूसरी तरफ़ ‘पुल बांधने’ का प्रयास है, यानी ‘ब्रिजिंग रोल’ है.बहरहाल,भारत ने चीन या तुर्की की तरह न तो शांति प्रस्ताव की बात की है और न ही कोई प्लेटफॉर्म दिया है. यानी भारत ने मध्यस्थता करने की इच्छा नहीं दिखाई है. यह नीति सही भी है, क्योंकि युद्धरत देशों के बीच मध्यस्थता के प्रयास अक्सर सफल नहीं होते. इसकी बजाय उनसे वार्ता करना और शांति के अपील करना बेहतर होता है. दरअसल,प्रधानमंत्री की पोलैंड और यूक्रेन यात्रा से तीनों देशों को लाभ ही हुआ है.भारत और यूक्रेन के बीच मानवीय सहायता, खेती, मेडिसिन और कल्चरल को-ऑपरेशन को बढ़ाने पर समझौता हुआ. प्रधानमंत्री का यह कहना बिल्कुल सही है कि युद्ध से समस्या का समाधान नहीं निकलता है. कोई भी समस्या केवल बातचीत और कूटनीति से ही हल हो सकती है.रूस और यूक्रेन आपस में बातचीत करें. यही एकमात्र तरीका है.उन्होंने कहा, शांति के प्रयास में भारत प्रमुख भूमिका निभाएगा.कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड और यूक्रेन यात्रा सकारात्मक माहौल में हुई और इसका दुनिया भर में अच्छा संदेश गया है. ऐसा अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया से भी जाहिर होता है.अमेरिकी विदेश प्रबंधन एवं संसाधन के उप विदेश मंत्री रिचर्ड आर वर्मा ने कहा कि उनका देश इस यात्रा से बहुत खुश है. अमेरिका को लगता है कि पीएम मोदी की पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा बेहद महत्वपूर्ण है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया में पीएम मोदी की टिप्पणी की भी तारीफ की है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है और यह शांति का समय है.बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के ऐसे पहले शासन प्रमुख हैं जिन्होंने इतनी कम अवधि में रूस और यूक्रेन दोनों की यात्रा की है. इससे पता चलता है कि भारत इन दिनों विश्व मंच पर कितने आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कह रहा है और दुनिया भारत की बात को कितनी गंभीरता से ले रही है. जाहिर है यह भारतीय विदेश नीति का नया दौर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विदेश नीति को निरंतरता प्रदान की है. हमारी विदेश नीति का आधार बुद्ध, महावीर और महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के साथ जीने के चिरंतन और शाश्वत सिद्धांत रहे हैं.