सत्तापक्ष के सदस्यों को मिला महत्व ,विपक्ष को महत्व देने से बचे विधानसभा अध्यक्ष
सतना।काग्रेस और भाजपा की सत्ता में विधानसभा की गतिविधियों में जो सक्रियता अब तक मिलती रही है. इस बार उपसमितियों के गठन में विपक्ष को विंध्य से महत्व न देकर प्रदेश में नई राजनीति के चलन का शुभारंभ किया गया है.
गौरतलब है कि प्रदेश की विधानसभा में हमेशा से विंध्य को विशेष महत्व दिया जाता रहा है. यही वजह है कि विंध्य के आधा दर्जन नेताओं को प्रदेश की विधानसभा चलाने का अवसर मिलता रहा है.बैरिस्टर गुलशेर अहमद,रामकिशोर शुक्ल,श्रीनिवास तिवारी और गिरीश गौतम विंध्य से ही विधानसभा अध्यक्ष का दायित्व सभालते रहे हैं. तब की राजनीति में क्या सत्ता क्या विपक्ष सब को खासा महत्व मिलता रहा है. विधानसभा की स्थाई समितियों में विंध्य के सदस्यों को पर्याप्त स्थान दिया जाता रहा है.
जानकारों की माने तो विंध्य के चार जिलों से काग्रेस के चार सदस्य निर्वाचित होकर विधानसभा पहुचे हैं. उनमें दो अनुभव की दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं. इसके बावजूद किसी समिति में किसी सदस्य को शामिल नही किया गया.पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष पूर्व मंत्री डॉ राजेन्द्र सिंह ,पूर्व नेता प्रतिपक्ष कभी आधा दर्जन से अधिक मंत्रालयों के मंत्री रहे अजय सिंह राहुल भइया को समितियों में स्थान न मिल पाना लोगो को समझ नही आ रहा है. इसके अलावा रीवा सेमरिया से पुनः जीत कर विधानसभा पहुचे अभय मिश्रा और सतना भाजपा के बड़े नेता चार बार के सांसद गणेश सिंह को हराकर विधानसभा पहुचे सिद्धार्थ कुशवाहा को भी समितियों में स्थान नही मिल पाया.वर्तमान में विंध्य का विपक्ष की ओर से नेतृत्व कर रहे चारो विधायक अनुभवी हैं. इसके बावजूद विधानसभा में उन्हें महत्व न दिया जाना यह प्रदर्शित कर रहा है कि सत्ता पक्ष का यह प्रयास है कि विंध्य में विपक्ष पूरी ताकत से काम नही कर सके.
हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद विंध्य में कभी भी काग्रेस के विधायकों ने संयुक्त रूप से अभी तक सरकार के खिलाफ कोई जनांदोलन नही किया है. फिर भी जानकारों का मानना है कि यदि काग्रेस के विधायक संयुक्त रणनीति के साथ सत्ता पक्ष को घेरने का प्रयास करेंगे तो उनके पक्ष में वातावरण बनने में समय नही लगेगा.अब देखना यह है कि विधानसभा अध्यक्ष अपनी इस चूक पर कोई संशोधन करते हैं कि यह किसी आगामी रणनीति का हिस्सा है जिसके संकेत आने वाले दिनों में मिल सकते हैं