गैस्ट्रोस्कीसिस से पीड़ित नवजात का सफल उपचार

नयी दिल्ली, 01 अगस्त (वार्ता) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक निजी अस्पताल में जन्मजात विकार “ गैस्ट्रोस्कीसिस ” के साथ जन्म लेने वाली एक नवजात बालिका का सफल उपचार किया गया है।
गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल बीते सप्ताह किये गये इस उपचार से गैस्ट्रोस्कीसिस से पीड़ित नवजात शिशु की जान बचाई गयी। गैस्ट्रोस्कीसिस एक असामान्य जन्मजात विकार है, जिसमें जन्म लेने वाले शिशु की आँत शरीर के बाहर होती है। भारत में गैस्ट्रोस्कीसिस के साथ जन्म लेने वाले बच्चों के बचने की दर 45 प्रतिशत है।
अस्पताल में पीडियाट्रिक सर्जरी के निदेशक डॉ. शान्दीप कुमार सिन्हा, ऑब्सटीट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी की निदेशक डॉ. प्रीति रस्तोगी और नियोनैटोलॉजी के निदेशक डॉ. टी जे एंटोनी ने बृहस्पतिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि इस बच्ची की आँतें गर्भनाल के पास पेट की दीवार में एक छेद से होकर शरीर के बाहर निकली हुई थीं। यह एक जानलेवा स्थिति होती है। अगर जन्म के बाद फौरन उपचार नहीं मिलें तो शिशु की जान भी जा सकती है। पंजाब की श्रीमती साक्षी शुक्ला को गर्भावस्था के 18-20 सप्ताह के बाद बच्ची के इस जन्मजात विकार के बारे में पता चला।
डॉ. रस्तोगी ने कहा बताया कि गैस्ट्रोस्कीसिस के मामले में यह बहुत आवश्यक होता है कि शिशु पूरे समय के बाद जन्म ले क्योंकि समय पूर्व जन्म लेने पर पहले से परिस्थिति ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन जाती है। जन्म के वक्त शिशु का वजन 2.3 किलोग्राम था और उसके अंग पूरी तरह से विकसित थे। जिसके कारण सर्जरी सुरक्षित बन गई।
यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है कि ऐसे मामलों का पूरा प्रोग्नोसिस अच्छा हो, और अगर प्रारंभिक अवधि को सफलतापूर्वक नियंत्रित कर लिया जाता है, तो ये शिशु सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। गैस्ट्रोस्कीसिस के विकार को जन्म के एक से दो घंटे में शीघ्र बंद करके बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
डॉ. सिन्हा ने कहा कि ऐसी मामलों में सर्जरी जन्म के कुछ घंटे के भीतर हो जानी चाहिए। ऐसी नाजुक प्रक्रियाओं के लिए विशेषज्ञता और आधुनिक सुविधाएं दोनों आवश्यक होती हैं। इस सर्जरी में एक घंटे 30 मिनट का समय लगा।

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