राजगृही कॉलोनी का प्रकरण लोकायुक्त में , दस्तावेज मांगे

सीबीआई के निर्देश पर कार्यवाई होने का दावा – पीड़ित संघ

इंदौर: शहर की चर्चित राजगृही कॉलोनी का जिन्न बाहर आ गया है। एक बार फिर उक्त कॉलोनी के जमीन की हेराफेरी करने को लेकर भू – माफिया बाबी छाबड़ा और गोविंद महेश्वरी पर प्रकरण दर्ज हो सकता है। लोकायुक्त को प्रकरण दर्ज कर जांच और कार्यवाही करने का कहा है, ऐसा दावा पीड़ित संघ के द्वारा किया जा रहा है।  ध्यान रहे कि 1990 में पिपलियाहाना की 64 एकड़ जमीन पर जागृति गृह निर्माण सहकारी संस्था ने राजगृही कॉलोनी काटी थी। उक्त कॉलोनी का नगर एवं ग्राम निवेश विभाग से 1990 में नक्शा पास हुआ था। इसके बाद संस्था के अध्यक्ष शांतिलाल बम ने सभी सदस्य को प्लॉट आवंटित कर रजिस्ट्री कर दी थी। संस्था के 894 सदस्यों को आधिपत्य भी सौंप दिए थे।
इसके बाद भू – माफिया बाबी छाबड़ा ने सन 2002 में अनैतिक और नियमों के विरुद्ध जाकर बिना सहमति के ग्यारह में से पांच संचालकों को इस्तीफा देने पर मजबूर करते हुए हटा दिया था। चुनाव कराए बगैर नए पांच संचालकों को नियुक्त कर संस्था में बैठा दिया। इसके बाद 30 जून 2003 नए संचालक मंडल का गठन कर पुराने बचे चुने हुए पांच अन्य संचालकों को भी हटा दिया। इस तरह 11 में से 10 संचालक अपने करके पूरी जागृति गृह निर्माण सहकारी संस्था पर छाबड़ा द्वारा कब्जा कर लिया गया।
ऐसा बताते हुए पीड़ित प्लॉट धारक संघ के अध्यक्ष शिकायत कर्ता जगदीश पांडे ने कहा कि कॉलोनी में 274 प्लॉटों को बाबी छाबड़ा और गोविंद महेश्वरी ने फर्जी तरीके से डबल प्लॉट आवंटित कर दिए।  हमने टीएनसीपी, सहकारिता विभाग, कलेक्टर  सभी संबंधित कार्यालयों से प्रमाणित दस्तावेज प्राप्त किए। उसके आधार पर दिल्ली सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों के शिकायत की थी।   पांडे ने कहा कि शायद सीबीआई ने लोकायुक्त को प्रकरण दर्ज करने के निर्देश दिए है।

इनका कहना है

स्थानीय लोकायुक्त एसपी सव्यसाची श्रॉफ ने इस मामले कहा कि सीबीआई सीधे लोकायुक्त को प्रकरण दर्ज करने का नहीं बोलती है। हमारे हेड ऑफिस को पत्र आता है। शिकायतकर्ता कह रहे है तो भोपाल से निर्देश आएगा , उस आधार पर आगे कार्यवाही होगी।

यह है पूरा मामला

भू – माफिया बाबी छाबड़ा ने राजगृही कॉलोनी की 64 एकड़ जमीन में से सुविधा गृह निर्माण संस्था को करीब 15 से 20 एकड़ जमीन फर्जी एग्रीमेंट करके बेच दी। उस पर नए से अपने लोगों को सदस्य बनाकर प्लॉट आवंटित कर दिए। इससे राजगृही संस्था के कई प्लॉट धारक वंचित हो गए और राजगृही संस्था विवादित हो गई। आज तक प्लॉट धारकों को पिछले 34 साल से प्लॉट नही मिले है। इसमें सहकारिता विभाग के तत्कालीन अधिकारियों की भूमिका संदेहस्पद है।

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