बैल की जगह इंसान दे रहा बख्खर

*कब बनेगी खेती लाभ का धंधा।*

 

*पेटलावद।*

हरिशराठोड

कृषि प्रधान भारत में आजादी के 75 वर्षो के बाद भी आम किसान को अपने खेत में हल बख्खर देने के लिए स्वयं ही बैल बनना पडता है और कृषि और मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करना पडता है।

सरकार के दावे खेत को लाभ का धंधा बनाने की बातो और जुमलो तक ही समिति रह गया है। किसानों की वास्तविक हालत देखना हो तो पेटलावद क्षेत्र में कई छोटे किसानों को देखा जा सकता है। जो की अपनी जमीन पर खेती करने के लिए कितना संघर्ष करते है।

 

*बैल बन कर बख्खर दे रहे।*

 

पेटलावद क्षेत्र के रामगढ में शांतिलाल नाम का किसान अपने खेत में हल व बख्खर दे रहा है। जो की स्वयं ही बैल बना और उसकी पत्नी उसके साथ चल रही है। यह दृश्य देख कर जब शांतिलाल से पूछा गया कि बैल नहीं है तो हंस कर जवाब देता है नहीं है। कहां से लाये। परिवार का पालन पोषण ही हो जाए तो सही है।

खेती में जो उपज होती है उससे पूरे वर्ष परिवार का गुजारा भी नहीं होता है। बाकी दिनों में मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर बसर करते है।

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