आरक्षित सीटों पर लगातार मजबूत हो रही है भाजपा

सियासत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा कार्यों की बदौलत आज देश की दलित और आदिवासी सुरक्षित सीटों की सबसे प्रभावी पार्टी भाजपा बन गई है. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है. पिछले 20 वर्षों के दौरान आदिवासी और दलित सीटों पर कांग्रेस के वोट निरंतर घट रहे हैं. इसका कारण यह है कि कांग्रेस नेतृत्व और संगठन ने आदिवासियों और दलितों को रिझाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए. कांग्रेस मानकर चलती है कि दलित और आदिवासी मतदाता उसे ही वोट करेगा. इसलिए पार्टी के नेता इस वर्ग के लिए अलग से कोई प्रयास नहीं करते. मध्य प्रदेश में भी यही स्थिति है कि पिछले दो चुनाव से कांग्रेस निरंतर दलित और आदिवासी लोकसभा क्षेत्र में हार रही है. कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि संघ परिवार के नेटवर्क का फायदा भाजपा को होता है और नुकसान कांग्रेस को.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना कल से ही सामाजिक समरसता के साथ काम करता आया है. 1934 में वर्धा के संघ शिक्षा वर्ग में पधारे महात्मा गांधी ने एक ही पंक्ति में दलित और सवर्ण वर्ग के स्वयंसेवकों को एक साथ भोजन करते देख आश्चर्य व्यक्त किया था और संघ की प्रशंसा की थी. उन्होंने जून 1934 में अपनी पत्रिका हरिजन और यंग इंडिया में इसका उल्लेख भी किया था. संघ परिवार सामाजिक समरसता के साथ ही दलित और आदिवासियों में विशेष रूप से कार्य करता आया है. इस दृष्टि से सेवा भारती और वनवासी कल्याण परिषद जैसे संगठन संघ ने खड़े किए हैं जो क्रमशः दलित और आदिवासियों के बीच लगातार काम करते हैं. संघ परिवार ने अयोध्या आंदोलन के दौरान खास तौर पर सोशल इंजीनियरिंग को बढ़ावा दिया.

नतीजा यह है कि दलित और आदिवासियों के साथ ही ओबीसी वर्ग की सबसे पसंदीदा पार्टी आज भाजपा है. हाल ही में नागपुर में संपन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में जो रिपोर्टिंग की गई उसके अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशभर में एक लाख 22 हजार 800 सेवा प्रकल्प चला रहा है. यह यह प्रकल्प संघ के सेवा विभाग द्वारा चलाए जा रहे हैं. विश्व हिंदू परिषद, ग्राम भारती, वनवासी कल्याण परिषद और अन्य अनुशांगिक संगठनों के सेवा कार्य अलग से चल रहे हैं. जाहिर है संघ के कारण दलित और आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को नुकसान हो रहा है.मध्यप्रदेश की अनुसूचित जाति और जनजाति सीटों पर कांग्रेस 20 साल में भी पार्टी का जनाधार मजबूत नहीं कर पाई है.

यही वजह है की लोकसभा चुनाव में एससी और एससी के लिए सुरक्षित 10 सीटों पर 20 साल में कांग्रेस का ग्राफ घट रहा है. इनमें एससी की चार और एसटी के लिए छह सीटें सुरक्षित है. वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महज चार सीटें ही जीत पाई थी. हालांकि 2009 में 29 में से 12 सीटों पर कांग्रेस जीती और एसटी एससी की सीटों पर भी बढ़त बनाई, लेकिन 2014 के चुनाव में 29 में से महज दो सीटें ही कांग्रेस जीत पाई. 2019 के चुनाव में यह ग्राफ घटकर केवल एक सीट पर आ पहुंचा. कांग्रेस केवल संसदीय सीट छिंदवाड़ा ही जीती पाई थी.मध्य प्रदेश की दो अनुसूचित जाति (एससी) की भिंड और टीकमगढ़ संसदीय सीट एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सुरक्षित खरगोन व बैतूल संसदीय सीट पिछले 20 साल से भाजपा के कब्जे में है. यहां से 2004 से 2019 तक भाजपा लगातार जीतती आ रही है. इन 20 सालों में एक बार भी कांग्रेस यहां सेंध नहीं लगा पाई है. वहीं एससी सीट उज्जैन और देवास में केवल एक ही बार 2009 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. वहीं एसटी सीट मंडला, धार और शहडोल से भी कांग्रेस केवल एक ही बार 2009 में जीती है. इन सीटों पर लगातार दो बार से भाजपा जीत रही है.

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