पन्ना : पन्ना की ऐतिहासिक रथ यात्रा धूमधाम के साथ निकाली गई।कहा जाता है कि पन्ना का जगन्नाथ स्वामी मंदिर पूरी के बाद विश्व का अद्वितीय मंदिर है। ये मंदिर और इसकी महिमा अप्रंपार है।इस मंदिर का निर्माण महाराजा किशोर सिंह ने 1700 में करवाया था।पन्ना के राजा को भगवान ने सपना दिया था कि वे पूरी आकर वो उनकी प्रतिमा लेकर पन्ना जाए और वाहन के लोगों को कलयुगी दुनिया के अंधेरे से बचाए।उसके बाद किशोर सिंह महाराज भगवान को लेने जाते हैं और भगवान की मूर्तियों को 2 साल की यात्रा के बाद बड़े पराक्रम से पन्ना लाके विराजमान कराया था।
यात्रा पूरी के तर्ज पर ही निकाली जाती है और विश्व में इस रथयात्रा का दूसरा स्थान है।इस मंदिर में 26 छोटे छोटे मंदिर भी हैं जो बहुत ही सिद्धि वाले मंदिर हैं। यहाँ सबकी मन्नतें अटका चढ़ाने से पूरी होती हैं।परंपरा अनुसार राजपरिवार की ओर से महाराजा छत्रशाल द्वितीय एवं राजकुमारी उपस्थित रहीं। उन्होंने पूजा अर्चना की एवं भगवान की रथयात्रा को रवाना किया।कार्यक्रम में जिला प्रशासन की ओर से पुलिस अधीक्षक पन्ना साई कृष्णा थोटा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रीमती आरती सिंह, एसडीओपी एपीएस बघेल, तहसीलदार पन्ना, पूर्व विधायक श्रीकांत दुबे सहित भारी संख्या में श्रद्धालु गण उपस्थित रहे।रथयात्रा शुभारंभ के अवसर पर सशस्त्र पुलिस के जवानों द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर के तहत सलामी दी गई।रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुंचते हैं।
रथ जनकपुर के लिए रवाना हुए। सबसे भगवान बलभद्र, फिर महारानी सुभद्रा। इसके बाद स्वयं जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ स्वामी का रथ रवाना हुआ।शहर के पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि राजाशाही जमाने में पन्ना की रथयात्रा बड़े ही शान शौकत व वैभव के साथ निकलती थी।इस रथयात्रा में सैकड़ों हाथी, घुड़सवार, सेना के जवान, राजे, महाराजे व जागीरदार सब शामिल होते थे।रुस्तम गज हांथी की कहानी भी यहाँ काफी प्रचलित है।बताते हैं कि तत्कालीन महाराज का यह प्रिय हाथी रथयात्रा में अपनी सूट से चांदी का चंबर हिलाते हुए चलता था।
हिंदू पंचांग के अनुसार आशा शुक्ल माँ की द्वितीय तिथि को यहाँ पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह हर साल रथयात्रा निकलती है।रथयात्रा के दौरान बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मंदिर से बाहर सैर के लिए निकलते हैं।या अनूठी रथयात्रा पन्ना से शुरू होकर तीसरे दिन जनकपुर पहुंचती है।तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा जनकपुर में भी भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है।रथयात्रा के जनकपुर पर पहुंचने पर यहाँ के मंदिर को बड़े ही आकर्षक ढंग से सजाया जाता है तथा यहाँ पर मेला भी लगता है।