दोनों दलों ने आज तक नहीं बनाया अजा वर्ग से जिलाध्यक्ष

कांग्रेस में अल्पसंख्यक समाज केवल शहर-ब्लॉक तक रहा सीमित

शाजापुर, 28 जून. कांग्रेस में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति राजनीतिक आकाओं के आशीर्वाद से होती है. जिसका आका ऊपर मजबूत, उसके गुट का जिलाध्यक्ष, लेकिन इसके उलट भाजपा में संगठन के चुनाव से अध्यक्ष तय किया जाता है. अभी तक दोनों ही दलों ने ओबीसी को ही ज्यादा मौका दिया है. भाजपा कांग्रेस से तीन दशकों में अभी तक ब्राह्मण समाज को अध्यक्ष की कमान नहीं सौंपी गई.
गौरतलब है कि आगामी महीने में भाजपा के संगठनात्मक चुनाव होना हैं. भाजपा के नए जिलाध्यक्ष को लेकर यूं तो कई दावेदार हैं, लेकिन दावेदारों की दावेदारी यहीं तक सीमित है, क्योंकि जिलाध्यक्ष का नाम ऊपर से तय होगा. अब देखना है कि इस बार भाजपा को जिलाध्यक्ष शाजापुर से मिलता है या फिर शुजालपुर से. कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग, क्षत्रिय समाज को मौका दिया, लेकिन कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष की ताजपोशी अजा-अजजा वर्ग को नहीं दी. यही आलम भाजपा का भी रहा. भाजपा ने दो बार क्षत्रिय समाज के नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया और उसके बाद से ओबीसी नेताओं को ही मौका मिलता रहा है. भाजपा ने भी आज तक अजा-अजजा वर्ग को जिलाध्यक्ष की कमान नहीं सौंपी. साथ ही यदि बात की जाए जातिगत समीकरण की, तो भाजपा-कांग्रेस ने आज तक अजा-अजजा वर्ग के साथ-साथ ब्राह्मण समाज को भी जिलाध्यक्ष नहीं बनाया. अब देखना है कि आगामी समय में भाजपा अजा-अजजा वर्ग के नेता को मौका देती है या फिर जातिगत समीकरण को देखकर ब्राह्मण समाज को मिलता है या फिर ओबीसी वर्ग से ही फिर ताजपोशी होती है.

सबसे ज्यादा वोट होने के बाद भी भाजपा-कांग्रेस ने क्यों बनाई दूरियां…?

विधानसभा हो या लोकसभा हो. सबसे ज्यादा वोट अजा-अजजा वर्ग के हैं. भाजपा और कांग्रेस ने आज तक जिलाध्यक्ष की कमान अजा वर्ग के नेताओं को नहीं सौंपी है. केवल महामंत्री पद पर भाजपा ने अजा वर्ग की ताजपोशी की, तो कांग्रेस ने जिला कार्यकारिणी तक ही सीमित रखा. दोनों ही दलों में अजा-अजजा वर्ग की अपनी शाखाएं हैं, लेकिन मुख्य राजनीतिक दल की कमान अजा-अजजा वर्ग को कांग्रेस और भाजपा ने मौका नहीं दिया. वहीं बात करें कांग्रेस की, तो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक अल्पसंख्यक समाज को भी कांग्रेस ने कभी जिलाध्यक्ष नहीं बनाया. केवल ब्लॉक और शहर कांगे्रस तक ही सीमित रखा. जबकि अल्पसंख्यक समाज हर परिस्थिति में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक है. पिछले विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक समाज ने कांग्रेस के पक्ष में बम्पर वोटिंग की थी. यहां तक कि लोकसभा चुनाव में भी अल्पसंख्यक समाज ने कांग्रेस को ही वोट दिया. लेकिन उसके बाद भी जिलाध्यक्ष कभी भी अल्पसंख्यक समाज से कांग्रेस ने नहीं दिया.

दोनों दलों ने ब्राह्मण समाज को नहीं दिया मौका

पूर्व मंत्री विद्याधर जोशी के बाद से कांग्रेस ने किसी भी ब्राह्मण कांग्रेसी नेता को जिलाध्यक्ष की कमान नहीं सौंपी. चार दशकों से किसी भी ब्राह्मण नेता को कांग्रेस जिलाध्यक्ष नहीं बनाया गया, तो वहीं भाजपा में भी चार दशकों में किसी ब्राह्मण नेता को भाजपा जिलाध्यक्ष की कमान नहीं मिली. कांग्रेस ने अजबसिंह पंवार ओबीसी वर्ग, रामवीरसिंह सिकरवार क्षत्रिय समाज, योगेंद्र सिंह क्षत्रिय समाज (वर्तमान में भाजपा में), और वर्तमान कांग्रेस जिलाध्यक्ष क्षत्रिय समाज से ही नरेश्वर प्रताप सिंह हैं. भाजपा की बात करें, तो दो बार नेमीचंद जैन, दो बार करण सिंह यादव, दो बार अरुण भीमावद, दो बार नरेंद्रसिंह बैस, अम्बाराम कराड़ा और वर्तमान जिलाध्यक्ष अशोक नायक. अब देखना यह है कि भाजपा के नए जिलाध्यक्ष की ताजपोशी सामान्य वर्ग से होती है या फिर अन्य वर्ग से.

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