रागायन की सभा में खिले बसन्त और फागुन के रंग

*पुणे से आए कलाकारों ने दी सांगीतिक प्रस्तुतियां*

ग्वालियर। शहर की प्रतिष्ठित सांगीतिक संस्था रागायन की रविवार को सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की बड़ी शाला में हुई संगीत सभा में बसंत और फागुन के रंग खूब खिले। सुर साज की इस सभा में सभी कलाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी।

शुरू में रागायन के अध्यक्ष एवं सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की बड़ी शाला के महंत पूरण वैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवकदास महाराज ने मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध गायक पं. सुधाकर देवले के साथ सरस्वती एवं गुरु पूजन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

इसके बाद सांगीतिक प्रस्तुतियों का सिलसिला शुरू हुआ। पुणे से आए परिमल कोल्हटकर ने राग यमन में दो बंदिशों पेश कीं। उन्होंने तिलवाड़ा में निबद्ध विलंबित बंदिश-एरी लाल मिले को रागदारी की बारीकियों के साथ पेश किया। जबकि तीन ताल में निबद्ध द्रुत बंदिश – लंगर तुरक जिन हुओ को भी उन्होंने बड़े मनोयोग से गाया। गायन का समापन उन्होंने भजन ‘मन लागो मेरो यार फकीरी में से किया।

पुणे से ही आए दूसरे कलाकार अभिषेक कुलकर्णी ने भी सभा में गायन प्रस्तुत किया। उन्होंने गायन के लिए राग हमीर का चयन किया। झूमरा ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे-‘चमेली फूली चंपा…जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे- सुरजन सो मिलाओ इन दोनों ही बंदिशों को अभिषेक ने बड़े कौशल से गाया। गायन का समापन उन्होंने भजन ‘जानकी नाथ सहाय करें से किया। दोनों ही प्रस्तुतियों में तबले पर ऋषिकेश सुरवासे व हारमोनियम पर अनूप मोघे ने संगत की।

अगली प्रस्तुति एकल तबला वादन की थी। कलाकार थे- ग्वालियर के डॉ. अरुण धर्माधिकारी। उन्होंने तीन ताल में अपना वादन पेश किया। पेशकार से शुरू करके उन्होंने विविध प्रकार के कायदे, टुकड़े, परनें, गतें व रेला की प्रस्तुति दी। उनके साथ हारमोनियम पर परिमल कोल्हटकर ने लहरा दिया।

सभी की समापन पुणे से पधारे पं. विकास कशालकर के खयाल गायन से हुआ। कशालकर ने अपने गायन के लिए रागे मालगंूजी का चयन किया। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे- वन में चरावत गैया इस बंदिश को गाने में जिस तरह कशालकर ने राग का विस्तार किया उससे एक-एक सुर खिलता चला गया। तानों की प्रस्तुति भी लाजवाब रही। द्रुत बंदिश को भी उन्होंने बड़े रंजक अंदाज में पेश किया। उनके साथ तबले पर ऋषिकेश सुरवासे व हारमोनियम पर पं. महेश दत्त पांडे ने साथ दिया।

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