उज्जैन:उज्जैन शहर हो या फिर जिला या फिर उज्जैन संभाग ही क्यों न हो, जिनके पास फ्रीज, टीवी और वाशिंग मशीन के साथ ही कार या बाइक हो वे भी गरीबों के अन्न पर डाका डाल रहे हैं। हालांकि बीते दो वर्ष पहले तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह के निर्देश के बाद खाद्य विभाग के अमले ने जांच करते हुए तीस हजार से अधिक फर्जी बीपीएल राशन कार्ड पकड़े थे। लेकिन इस तरह की जांच बीते कई दिनों से बंद पड़ी हुई है।इसके पीछे कारण पहले विधानसभा चुनाव और फिर इसके बाद लोकसभा चुनाव होना है। हालांकि खाद्य विभाग के अधिकारियों का यह कहना है कि आचार संहिता हटने के बाद एक बार फिर से जांच करने का काम शुरू किया जाएगा।
लेकिन सूत्र यह बताते हंै कि भले ही बीते दो वर्ष पहले बीपीएल योजना में बड़ी संख्या में फर्जीवाड़ा पकड़ाया हो, लेकिन बावजूद इसके फर्जी गरीबों की संख्या थमने का नाम नहीं ले रही है। अर्थात अपात्र लोगों द्वारा गरीबों की इस योजना का लाभ लेने का सिलसिला जारी है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में फर्जी बीपीएल राशन कार्ड बन कैसे जाते हंै। निश्चित ही किसी मिलीभगत के बगैर राशन कार्ड बनाना मुश्किल ही होता है। इसलिए जरूरी है कि जिले के कलेक्टर नीरज कुमार सिंह अब गंभीरता के साथ फिर से जांच कराएं। वहीं ऐसो पर भी हाथ डाला जाए जो फर्जी बीपीएल राशन कार्ड बनाने में अमीरों की मदद करता हो।
बता दें कि बीपीएल कार्ड अनुविभागीय अधिकारी की सहमति से ही बनाया जाता है। तो फिर फर्जी बीपीएल राशन कार्ड कैसे बनाए जा रहे हैं। इस मामले की तह तक जाने की जरूरत है कि कहीं संबंधित क्षेत्रों के अनुविभागीय अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं होती है..! बीपीएल राशन कार्ड बनवाने के लिए पात्र लोगों को कई प्रकार के नियमों पर खरा उतरना होता है। उदाहरण के लिए बीपीएल राशन कार्ड धारी परिवार की वार्षिक आय 40,000 से अधिक नहीं होना चाहिए, इसके अलावा उनका मकान पक्का नहीं होना चाहिए।
इतना ही नहीं उनके पास कोई भी लग्जरी सामान जैसे टीवी, फ्रीज, चौपहिया वाहन आदि नहीं होना चाहिए। पात्र नहीं होने के बावजूद बीपीएल कार्ड बनवाने में लोग इसलिए रिस्क लेते हैं। क्योंकि इसके जरिए वे शासन की कई योजनाओं का लाभ उठाने के हकदार हो जाते हैं। नि:शुल्क इलाज, आवास, खाद्यान्न, विवाह, पेंशन आदि कई तरह के लाभ वे ले सकते हैं। इस तरह वे वास्तविक गरीब लोगों का हक छीनते हैं। बताया गया है कि अपात्र लोग जब गरीबों का बीपीएल कार्ड बनवाते हैं तो जो पता लिखाया जाता है वह वास्तव में होता नहीं है। अर्थात पता कहीं और का होता है और घर कहीं और रहता है। तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह ने जब जांच के आदेश दिए थे और सर्वे टीम ने अपना काम शुरू किया था तो अधिकांश जगह जब टीम पहुंची तो घर परिवार का कोई सदस्य उस पते पर नहीं मिला। क्योंकि उनके अपने बड़े मकान दूसरी जगह पर थे और वे दो मंजिला मकानों में रह रहे थे। इसके अलावा कार समेत अन्य सुविधा होने का बाद भी शासन की सुविधा ले रहे थे।
पुन: जांच की जाये तो फूट सकता है भांडा
यदि कलेक्टर नीरज कुमार सिंह फिर से जांच कराने के आदेश देकर सर्वे के लिए टीम गठित करते हंै तो बीते वर्षों की तरह ही एक बार फिर फर्जी बीपीएल राशन कार्ड धारियों का भांडा फूट सकता है। बता दें कि अभी भी कई बार यह सामने आया है कि जांच में तहसीलदार आदि के फर्जी हस्ताक्षर से बीपीएल कार्ड कड़ाए गए है। लिहाजा यह लिखने में कोई गुरेज नहीं है कि बीते कई दिनों से फर्जी राशनकार्ड धारियों की संख्या में बढ़ोतरी हो ही गई होगी।