ई-कामर्स इंडस्ट्री के कारण इन दिनों फर्जी आर्थिक समीक्षाओं और रेटिंग का धंधा खूब फल फूल रहा है. खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए एक कार्य योजना पर काम कर रहा है.दरअसल, इन दिनों डिजिटल स्वरूप में सूचनाओं की बाढ़ ने खबरों और सूचनाओं के उपभोग करने के तरीके को भी मौलिक रूप से बदल दिया है और इससे यह पता करना ही मुश्किल हो गया है कि कौन सी जानकारी फर्जी है और कौन सी प्रामाणिक.देश में आम चुनाव अपने अंतिम पायदान पर है और ऐसे क़िस्सों की बाढ़ आई हुई है.आज जब दुनिया फर्जी खबरों से निपटने के लिए जूझ रही है, डिजिटलीकरण का एक और पहलू नियामकों और अन्य हितधारकों को परेशान कर रहा है, वह है ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर फर्जी ऑनलाइन समीक्षाओं की समस्या.अब देश का उपभोक्ता मामलों का विभाग,उपभोक्ता समीक्षाओं के लिए गुणवत्ता मानकों और नियम-कायदों को लागू करने की तैयारी कर रहा है, डीसीए की सभी हितधारकों या साझेदारों के साथ हुई बैठक में शामिल ई-कॉमर्स कंपनियों ने भी सरकार की इस पहल का समर्थन किया है. प्रस्तावित गुणवत्ता नियंत्रण आदेश से संभवत: पूर्वग्रहों और पक्षपात के साथ उपभोक्ता समीक्षाओं को ऑनलाइन प्रकाशित करने, उनके संदेश को बदलने के लिए समीक्षाओं को संपादित करने या नकरात्मक समीक्षाओं को रोकने या हतोत्साहित करने से ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों को रोका जा सकेगा.
उपभोक्ताओं के ऑनलाइन व्यवहार को तय करने में समीक्षाओं की अहम भूमिका होती है.दूसरे लोगों की सिफारिशों को पढऩा किसी दुकान में जाकर उत्पादों के परीक्षण और आजमाने के डिजिटल समकक्ष जैसा ही लगता है.इस संदर्भ में, ऑनलाइन समीक्षाएं उन उत्पादों की गुणवत्ता को जानने के एक विकल्प की तरह काम करती हैं, जिन्हें हम भौतिक रूप से जाकर नहीं जांच पाते.एक वैश्विक अध्ययन से पता चलता है कि ऑनलाइन समीक्षाएं पेश करने वाली वेबसाइटों के लिए कन्वर्जन रेट यानी विजिट करने वाले उपभोक्ता के ग्राहक बनने की दर स्पष्ट रूप से बढ़ सकती है.इसके अलावा, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर विचारों के खूब आदान-प्रदान को देखते हुए कारोबारी और ऑनलाइन खुदरा विक्रेता अपने उत्पादों के बारे में उपभोक्ताओं की राय की निगरानी करने में सक्षम हैं.दूसरी तरफ, फर्जी और प्रायोजित समीक्षाएं उपभोक्ताओं को गलत खरीदारी का निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे बाजार के परिणाम विकृत हो जाते हैं. इससे ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्मों की विश्वसनीयता और भरोसे पर भी असर पड़ता है.अक्सर फर्जी समीक्षाएं लिखने के लिए संदिग्ध यूजर्स और बॉट्स की सेवाएं ली जाती हैं ताकि किसी एक कंपनी या विक्रेता को फायदा हो. इंटरनेट पर सर्च रैंक एल्गोरिदम अक्सर ऑनलाइन समीक्षाओं पर निर्भर होते हैं, जिसकी वजह से किसी उत्पाद की दृश्यता और बिक्री पर असर पड़ता है.यह विक्रेताओं के लिए अपने उत्पादों की रैंकिंग में हेरफेर के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन है. हालांकि मध्यम अवधि में इस तरह की समीक्षाएं अक्सर बिक्री और राजस्व के आंकड़े को नुकसान पहुंचाती हैं क्योंकि आमतौर पर इनसे घटिया गुणवत्ता के उत्पादों को बढ़ावा मिलता है.फर्जी समीक्षाओं की पहचान करने व उन्हें हटाने और उपभोक्ताओं का भरोसा बनाए रखने की इस निरंतर लड़ाई में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद लेना अनिवार्य हो गया है.सामग्री विश्लेषण के तरीके का इस्तेमाल कर एआई फर्जी समीक्षाओं की पहचान करने में मदद कर सकती है.भुगतान वाली समीक्षाओं को प्रकाशित करने और प्रचार सामग्री के बारे में पूरी तरह से खुलासे की जरूरत के बारे में भी नियम-कायदे बनाने चाहिए. सरकार के प्रस्तावित नियम-कायदों की सफलता अंतत: इसके प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी. दरअसल डिजिटल इंडिया का नारा बहुत अच्छा है. डिजिटल इंडिया से पारदर्शिता बढी है. भ्रष्टाचार भी कम हुआ है लेकिन इसके दूसरा नुकसान भी सामने आ रहे हैं. जाहिर है केंद्र सरकार इस मामले में चिंतित है और इसे रोकने के लिए प्रयास भी कर रही है.