उम्मीद की धरती पर खड़ा भारत

मौजूदा दौर में जब, वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं और चुनौतियों के भंवर में फंसी है, भारत एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है. विश्व बैंक द्वारा जून 2025 में जारी ‘इंडिया डेवलपमेंट अपडेट’ रिपोर्ट भारत की आर्थिक यात्रा की एक स्पष्ट और आशावादी तस्वीर पेश करती है.विश्व बैंक की रिपोर्ट का सबसे उत्साहजनक दावा यह है कि भारत में 2011-12 के बाद से गरीबी में लगातार कमी आई है, और यह गिरावट कोविड-19 महामारी के बाद भी जारी रही. रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्षों में भारत ने 17 करोड लोगों को गरीबों की रेखा से निकाला है. यह एक अभूतपूर्व उपलब्धि है. इसका ज्यादातर श्रेय नरेंद्र मोदी की सरकार को है, तो इसमें कुछ भूमिका डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार की भी है जिनकी नीतियों को नरेंद्र मोदी सरकार ने न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि और मजबूत किया.

विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2024-25 के लिए 6.6 फीसदी अनुमानित है. यद्यपि यह दर पिछले वर्ष (2023-24) की 8.2 फीसदी की असाधारण वृद्धि से कुछ कम प्रतीत हो सकती है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि पिछली दर आधार प्रभाव के कारण थी. वास्तविक कहानी 2025-26 के लिए अनुमानित 6.7 $फीसदी की वापसी में निहित है, जो दर्शाता है कि भारत की वृद्धि केवल आकस्मिक उछाल नहीं, बल्कि संरचनात्मक और टिकाऊ है. यह वृद्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू किए गए दूरदर्शी आर्थिक सुधारों और नीतिगत पहलों का प्रत्यक्ष परिणाम है, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार प्रदान किया है. वैश्विक उतार-चढ़ावों के बावजूद, भारत ने अपनी आर्थिक स्थिरता को सफलतापूर्वक बनाए रखा है. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार अब 645 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर है, जो रुपए को बाहरी झटकों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. दरअसल,खुदरा महंगाई का 5 फीसदी के करीब रहना और वर्ष के अंत तक 4 फीसदी के भीतर आने की उम्मीद – सरकार की कुशल आर्थिक प्रबंधन को दर्शाता है. इससे आम नागरिक की क्रय शक्ति सुरक्षित रहती है. इसके अतिरिक्त, राजकोषीय घाटे में कमी और राजस्व संग्रह में लगातार सुधार यह प्रमाणित करता है कि भारत की सार्वजनिक वित्तीय सेहत अब पहले से कहीं अधिक मजबूत और विश्वसनीय है. यह स्थिरता वैश्विक निवेश के लिए भारत को एक आकर्षक गंतव्य बनाती है.

हालांकि, विश्व बैंक की रिपोर्ट कुछ महत्वपूर्ण चेतावनियां भी देती हैं. निजी खपत में अपेक्षित गति का अभाव घरेलू मांग के लिए चिंता का विषय है. रोजगार बाजार में अभी भी सुधार की जरूरत है, खासकर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने, असंगठित क्षेत्र की असुरक्षा को दूर करने और स्किल गैप की समस्या को पाटने के लिए.बहरहाल, विश्व बैंक का यह विश्वास है कि भारत 2047 तक एक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बन सकता है, यह दरअसल,हमारे राष्ट्रीय आकांक्षाओं को बल देता है. ‘मेक इन इंडिया’ और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन जैसी योजनाएं भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर रही हैं.

शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास में निरंतर निवेश एक कुशल और उत्पादक कार्यबल तैयार कर रहा है.यूपीआई जैसी योजनाएं भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रही हैं और शासन में पारदर्शिता व दक्षता ला रही हैं. ये डिजिटल उपकरण नीति निर्माताओं के हाथ में अब एक शक्तिशाली औज़ार बन चुके हैं. मौजूदा दौर में जब, दुनिया मंदी, भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार में गिरावट से जूझ रही है, भारत एक स्थिर, लचीली और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी आर्थिक नीतियों, विशेषकर मजबूत मैक्रो-इकोनॉमिक प्रबंधन, वित्तीय समावेशन और डिजिटल परिवर्तन पर उनके फोकस ने भारत को वैश्विक मंच पर एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित किया है. चुनौतियां अभी शेष हैं, विशेषकर निजी उपभोग और रोजगार के क्षेत्र में, लेकिन भारत का संरचनात्मक विकास मॉडल अब उसे एक मजबूत और आत्मविश्वासपूर्ण भविष्य की ओर ले जा रहा है.

 

 

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