भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया. हमारा संविधान देश के नागरिकों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सरकार चुनने का अधिकार देता है.दरअसल,भारत विश्?व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्?कृतिक विरासत है.आज़ादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है. भारत कृषि में आत्?म निर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है. विश्?व का सातवां बड़ा देश होने के साथ ही भारत अब विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था है. भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भी कहा जाता है. भारत यदि विश्व में प्रतिष्ठित रहा है तो अपनी गौरवशाली संस्कृति के आधार पर ही.भारत के संविधान के प्रावधानों के अतिरिक्त संविधान में जो चित्र अंकित किये गये हैं, वे सभी भारत की गौरवशाली विरासत का संदेश देते है. भारत के संविधान में ऐसे कुल बाईस चित्र हैं. इनमें वैदिक काल के गुरुकुल, भागीरथ की तपस्या, लंका पर रामजी की विजय, नटराज, हनुमानजी, गीता का उपदेश देते भगवान श्रीकृष्ण, मोहन जोदड़ो के चित्र, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी के अतिरिक्त मौर्य एवं गुप्त काल की गरिमा चित्र, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उडिय़ा मूर्तिकला, मुगलकाल में अकबर का दरबार, शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान, रानी लक्ष्मीबाई, गांधीजी की दांडी यात्रा आदि चित्र हैं. ये चित्र दरअसल, भारत की संस्कृति और सामाजिक यात्रा है. वस्तुत: चित्रों से स्पष्ट है कि संविधान निर्माता स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा का आधार विरासत को बनाना चाहते थे.बहरहाल, 1950 से लेकर अब तक की भारत की विकास यात्रा पर दृष्टि डाली जाए तो बहुत सारी गौरवशाली उपलब्धियां नजर आती हैं. साक्षरता, कृषि में आत्मनिर्भरता, सैनिक साजो समान और हथियार निर्माण में आत्मनिर्भरता, अंतरिक्ष विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, विभिन्न अनुसंधान इत्यादि सभी क्षेत्रों में भारत ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं. विश्व मंच पर भारत अपनी मजबूत उपस्थिति रखता है. इसका सबूत है कि आज दुनिया के सभी बड़े देश भारत से संबंध से अच्छे संबंध रखना चाहते हैं. यहां तक चीन भी अब भारत के साथ विभिन्न मुद्दों और विवादों का हल चाहता है. जाहिर है यह सभी उपलब्धियां गौरवशाली हैं, इसके बावजूद सामाजिक विषमता, आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य, सभी को अच्छी चिकित्सा और शिक्षा के मामले में बहुत कुछ किया जाना बाकी है. जब संसद और विधानसभाओं में मारपीट और हाथापाई के दृश्य दिखते हैं तो लगता है कि हम सहिष्णुता और उदारता की हमारी गौरवशाली विरासत को विस्मृत करने लगे हैं. माफियाओं के समक्ष हमारा तंत्र अभी भी बेबस नजर आता है. ऐसा लगता है हमारे तंत्र पर संपन्न लोग हावी होते जा रहे हैं. व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्यों की भी बलि दी जा रही है. कई बार सिस्टम को गुलाम बनाने की कुचेष्टा भी करने में भी गुरेज नहीं किया जाता. यह सही है कि हम विश्व की पांचवी सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था हैं, लेकिन देश पर लाखों करोड़ रुपए का कर्ज भी है. इस परिप्रेक्ष्य में कठोर सत्य यही है कि चूंकि हमारे जीडीपी का आकार बड़ा और व्यापक है, लिहाजा हम बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, लेकिन हम कर्जमुक्त अर्थव्यवस्था नहीं हैं. दरअसल,भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष एक बड़ी चुनौती रेवड़ी कल्चर भी बन गया है. मुफ्त की योजनाओं से आजकल अर्थशास्त्री बेहद चिंतित नजर आ रहे हैं क्योंकि इसके दूरगामी नुकसान हैं. लेकिन दुर्भाग्य से हमारे राजनीतिक दलों को इसकी चिंता नहीं है. कुल मिलाकर देश ने जहां अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं वहीं अनेक क्षेत्रों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
उपलब्धियों पर गर्व लेकिन कमियों की चिंता भी जरूरी
