ट्रम्प ने अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन छोड़ने का आदेश दिया

वाशिंगटन, 21 जनवरी (वार्ता) अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से देश को को अलग करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आदेश जारी किये हैं।

मीडिया रिपोर्टों में मंगलवार को यह जानकारी दी गई।

नवनियुक्त अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्हाइट हाउस पहुंचने के बाद दस्तावेज़ को मंजूरी देते हुए कहा, “ओह, यह बहुत बड़ा है।” यह उन दर्जनों कार्यकारी कार्रवाइयों में से एक थी, जिन पर उन्होंने कार्यालय में पहले ही दिन अपने हस्ताक्षर किए थे।

बीबीसी की मंगलवार की रिपोर्ट के अनुसार यह दूसरी बार है जब श्री ट्रंप ने अमेरिका को डब्ल्यूएचओ से बाहर निकालने का आदेश दिया है।

रिपोर्टों के अनुसार, श्री ट्रम्प इस बात के आलोचक थे कि अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कैसे कोविड-19 को संभाला और महामारी के दौरान जिनेवा स्थित संस्था से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू की। बाद में राष्ट्रपति जो बिडेन ने उस फैसले को पलट दिया। पहले ही दिन इस कार्यकारी कार्रवाई को अंजाम देने से यह अधिक संभावना है कि अमेरिका औपचारिक रूप से वैश्विक एजेंसी छोड़ देगा।

श्री ट्रंप ने ओवल ऑफिस में डब्ल्यूएचओ का जिक्र करते हुए कहा, “वे हमें वापस चाहते थे, इसलिए हम देखेंगे कि क्या होता है।”

आदेश में कहा गया है कि चीन के वुहान से उत्पन्न हुई कोविड-19 महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य संकटों से निपटने में डब्ल्यूएचओ की ग़लती, तत्काल आवश्यक सुधारों को अपनाने में इसकी विफलता और अनुचित से स्वतंत्रता का प्रदर्शन करने में इसकी असमर्थता के कारण अमेरिका पीछे हट रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यकारी आदेश में यह भी कहा गया है कि वापसी अमेरिका द्वारा डब्ल्यूएचओ को किए गए अनुचित भारी भुगतान का परिणाम थी, जो संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा है।

रिपोर्टों के अनुसार, ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ पर चीन के प्रति पक्षपाती होने का आरोप लगाया कि कैसे उसने प्रकोप के दौरान मार्गदर्शन जारी किया।

बिडेन प्रशासन के तहत अमेरिका विश्व स्वस्थ्य संगठन का सबसे बड़ा फंडर बना रहा और 2023 में इसने एजेंसी के बजट का लगभग पांचवां हिस्सा योगदान दिया। संगठन का वार्षिक बजट छह करोड़ 80 लाख है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डब्ल्यूएचओ छोड़ने के श्री ट्रम्प के फैसले की आलोचना कर रहे हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि इसके परिणाम अमेरिकियों के स्वास्थ्य पर पड़ सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि यह कदम मलेरिया, तपेदिक और एचआईवी और एड्स जैसी संक्रामक बीमारियों से लड़ने में हुई प्रगति में बाधा बन सकता है।

वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लॉरेंस गोस्टिन ने कहा, “यह एक विनाशकारी निर्णय है। विश्व स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर घाव है, लेकिन अमेरिका के लिए और भी गहरा घाव है।”

 

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