सियासत
कांग्रेस में गुटबाजी हमेशा से रही है. स्वाधीनता के पहले यह क्लासिकल और वैचारिक थी. मसलन उस समय कांग्रेस में नरम और गरम दल थे. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय गरम दल में थे, जिन्हें लाल, बाल और पाल की तिकड़ी कहा जाता था. तो दूसरी तरफ दादा भाई नौरोजी, पंडित मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और एच आर गोखले थे. जिन्हें नरम दल के नेता कहा जाता था. आजादी के बाद भी कांग्रेस में दक्षिण पंथी और समाजवादी ऐसे दो गुट थे. दक्षिण पंथी नेताओं में सरदार पटेल, गोविंद बल्लभ पंत, यशवंत राव चव्हाण, काका साहब गाडगिल, कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी, बाबू राजेंद्र प्रसाद जैसे नेता थे, तो समाजवादियों में आचार्य जेबी कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, अशोक मेहता, आचार्य नरेंद्र देव, जवाहरलाल नेहरू जैसे समाजवादी विचार रखने वाले नेता थे.
इंदिरा गांधी के कांग्रेस में उभरने के बाद कांग्रेस की गुटबाजी वैचारिक ना हो कर राजनीति से प्रेरित हो गई.लेकिन मध्य प्रदेश में इससे भी आगे बढ़कर कांग्रेस की गुटबाजी अंदरूनी घमासान में बदल गई है. जबकि इंदौर जैसे भाजपा के बड़े किले में तो यह घमासान लड़ाई झगड़ों और मारपीट में बदलता जा रहा है. हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रभारी संजय दत्त के समक्ष इंदौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 के कार्यकर्ताओं के बैठक में मारपीट हो गई. विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 में चुनाव लड़े चिंटू चौकसे का कांग्रेस के ही कुछ नेताओं से विवाद हो गया, यह विवाद इतना बढ़ गया कि लात घूसे चलने लगे।
कुछ दिन पूर्व इसी तरह जब युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय भान सिंह चिब इंदौर आए थे, तब भी विपिन वानखेड़े और युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मितेंद्र सिंह यादव के समक्ष विवाद हो गया था. कांग्रेस का यह घमासान झगड़ों और मारपीट में बदलता जा रहा है। ऐसा तब है, जब इंदौर में कांग्रेस बद से बदतर स्थिति में आ गई है. कांग्रेस इंदौर जिले में एक के बाद दूसरा चुनाव हार रही है. पिछले 25 वर्षों में ना उसका मेयर बना है और ना ही जिला पंचायत अध्यक्ष. 1984 के बाद कांग्रेस कभी इंदौर लोकसभा चुनाव भी नहीं जीती। इसके बावजूद नेताओं के झगड़े कम नहीं हो रहे हैं. जहिर है कांग्रेसी सुधरने को तैयार नहीं हैं