मुंबई, (वार्ता) निवेश, धन प्रबंधन और बाजार अनुसंधान सेवा बाजार की प्रमुख कंपनी एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के एक अध्ययन में दर्शाया गया है कि सरकारी घाटा कम करने की दिशा में राज्यों और केंद्र सरकार की चाल में ताल मेल गड़बड़ा रहा है और प्रमुख राज्यों में चुनाव से पहले लोक लुभावन वायदों से चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा बढ़ने का जोखिम ऊंचा हो गया है।
एमके ग्लोबल के विश्लेषकों ने एक एक मीडिया वेबिनार में कहा कि उनके विश्लेषण के अनुसार केंद्र और राज्यों की राजकोषीय मजबूती की राह पर समन्वय के समक्ष कुछ जोखिम उभर रहे हैं। राज्यों द्वारा चुनाव के कारण किए गए लोकलुभावन खर्च अभूतपूर्व हैं और इससे वित्त वर्ष 2024-25 में राजकोषीय फिसलन का जोखिम बढ़ गया है। इससे राज्यों द्वारा अधिक उधारी भी ली जा सकती है।
फर्म के विश्लेषण के अनुसार कोविड के बाद समेकन हासिल करने के तरीके में केंद्र और राज्यों का राजकोषीय व्यवहार अलग-अलग रहा है। केंद्र ने अपने राजस्व लक्ष्यों को पूरा किया है, जिससे उसे घाटे में कटौती करते हुए पूंजीगत व्यय पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली है। इसके विपरीत राज्यों के राजस्व में केंद्र की तुलना में अच्छी गति से वृद्धि होने के बावजूद राज्य राजस्व लक्ष्यों को पूरा करने में लगातार विफल रहे हैं, जिससे उन्हें व्यय, विशेष रूप से पूंजीगत व्यय में भारी कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
चालू वित्त वर्ष के बजट में राजकोषीय घाटे में पिछले साल की तुलना में 0.7 प्रतिशत की कटौती का लक्ष्य का बजट बनाया है जबकि राज्य सरकारों ने पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे में इसी स्तर की कमी का लक्ष्य हासिल करने के बाद चालू वित्त वर्ष के लिए 0.2 प्रतिशत अधिक घाटे का बजट लेकर चल रहे हैं।
वर्ष 2023 और 2024 में चुनाव वाले 10 प्रमुख राज्यों में से लगभग हर राज्य ने पार्टी लाइन की परवाह किए बिना नई मुफ्त योजनाएँ शुरू की हैं। विशलेषण के मुताबिक यह कोई नयी घटना नहीं है। पिछले 20 वर्षों में 19 राज्यों के एमके ग्लोबल के विश्लेषण से पता चलता है कि चुनाव के वर्ष में उससे पिछले वर्ष की तुलना में राज्यों का राजकोषीय घाटा औसतन 0.5 प्रतिशत अधिक रहा है। इससे उनके राजस्व खर्च औसतन 0.4 प्रतिशत अधिक रहे और पूंजीगत खर्च में 0.1 प्रतिशत की कमी दिखी।
विश्लेषण के अनुसार इस मामले में सबसे अधिक गड़बड़ी छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और आंध्र प्रदेश में है जहां चालू वित्त वर्ष के अंत तक चुनाव हो चुके हैं या होने वाले हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों की मुफ्त की रेवड़ियों की वजह से राज्यों की सब्सिडी चालू वित्त वर्ष में 3.7 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गयी है जो उनकी यह कुल राजस्व प्राप्तियों और कुल व्यय के क्रमश: 8.6 प्रतिशत और 8.7 प्रतिशत के के बराबर है। राज्यों की सब्सिडी का यह अनुपात 2020-21 के बाद से सबसे अधिक ऊंचा है। सब्सिडी में सालाना आधार पर 26% की वृद्धि का बजट है – जबकि एक आधार प्रभाव है, मुफ्त उपहारों की घोषणाओं के कारण यह वृद्धि हुई है।
पिछले पांच वर्षों में राज्यों की राजस्व वृद्धि उनके स्वयं के कर राजस्व (ओटीआर) से हुई है। उनकी इस दौरान राज्यों की समग्र राजस्व प्राप्तियों में ओटीआर में साल दर साल 10.4 प्रतिशत की और समग्र राजस्व में औसतन 8.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि रही है।
वर्तमान में राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में ओटीआर का हिस्सा 52 प्रतिशत बैठता है । यह वर्ष 20218-19 की तुलना में ओटीआर के हिस्से में 4 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
लेकिन वित्त वर्ष 24 में राज्यों की ओटीआर सिर्फ 9% बढ़ी जबकि केंद्र की सकल कर राजस्व वृद्धि 13 प्रतिशत रही। चालू वित्त वर्षमें राज्यों के ओटीआर में 18 प्रतिशत की सालाना वृद्धि का अनुमान है जबकि केंद्र की कर राजस्व वृद्धि लगभग 11 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
रिपोर्ट में कहा है कि ऐसे में ओटीआर में 18 प्रतिशत की वृद्धि के राज्यों के अनुमान कुछ अधिक आशावादी दिखते हैं।
एमके ग्लोबल का कहना है कि जीडीपी वृद्धि दर अपेक्षाकृत धीमी होने से चालू वित्त वर्ष 25 में राजस्व संग्रह का बेहतर प्रदर्शन संभव नहीं दिखता है। अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों राजस्व में उनके माल एवं सेवाकर (एसजीएसटी) में सालाना लगभग 18 प्रतिशत की वृद्धि प्राप्ति के किसी अन्य घटक की तुलना में कहीं तेजी अधिक रही है और उनके ओटीआर में एसजीएसटी का हिस्सा 40 प्रतिशत से अधिक बनाता है।
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल का मानना है कि राज्य सरकारे चालू वित्त वर्ष के लिए गैर-कर राजस्व में 25 प्रतिशत और गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियों में 159 प्रतिशत की वृद्धि का बजट बना रखा है । यह इन मदों में पिछले वित्त वर्ष मे क्रमश: 13 प्रतिशत और 66 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में बहुत अधिक वृद्धि का अनुमान है।
रिपोर्ट में इन मदों को राजस्व के अस्थिर राजस्व स्रोत बताते हुए कहा गया है कि इसलिए वित्त वर्ष 25 में राज्यों के कुल राजस्व के अनुमान जोखिम में हैं।