कांग्रेसी मुखर, भाजपाई दे रहे आश्वासन

महाकौशल की डायरी

अविनाश दीक्षित

जबलपुर में इन दिनों एक मुद्दे पर कांग्रेसी मुखर रवैया अपनाए हुए हैं जबकि भाजपा नेता आश्वासन देते नजर आ रहे हैं। दरअसल जबलपुर में बड़े स्तर पर किसान पशुपालन से भी जुड़े हुए हैं, दुग्ध उत्पादन में भी जिला प्रदेश में अव्वल है। इसी के मद्देनजर 2019 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री रहे तरुण भानोट के प्रस्ताव पर जबलपुर में डेयरी उद्योगों के विकास के उद्देश्य से नानाजी देशमुख वेटरनरी विश्वविद्यालय के अधीनस्थ डेयरी साइंस कॉलेज शुरू करने के प्रस्ताव को ना केवल हरी झंडी दे दी थी, बल्कि 100 करोड़ से अधिक का बजट आवंटन भी कर दिया गया। नानाजी देशमुख विश्वविद्यालय ने इमलिया में 14 हेक्टेयर भूमि भी आवंटित कर दी थी, मगर सूबे में सरकार बदलते ही मामला ठन्डे बस्ते में चला गया। पिछले दिनों प्रदेश सरकार की ओर से वेटरनरी विश्वविद्यालय में एक पत्र पहुंचा, जिसमें डेयरी साइंस कॉलेज उज्जैन शिफ्ट करने का प्रस्ताव भेजने को कहा गया।

वेटरनरी विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने बिना कोई आपत्ति जताये आननफानन में प्रस्ताव भेज भी दिया, परंतु इस बीच गुपचुप चल रहा खेल उजागर हो गया। इस विषय को लेकर राज्यसभा सांसद विवेक कृष्ण तंखा ने एक्स पर पोस्ट करते हुए भाजपा सरकार पर तंज कसा। तन्खा ने अपनी पोस्ट में लिखा कि अन्याय की हद होती है, जबलपुर और महाकोशल के साथ यह खेल कब तक चलेगा, मोहन यादव जी आप सम्पूर्ण प्रदेश के रखवाले हैं, जबलपुर की अस्मिता का सम्मान भी आपका कर्त्तव्य है, हम सोये जरूर हैं, मगर मृत नहीं हैं। मशहूर क़ानूनविद की इस पोस्ट के बाद कांग्रेसी नेता तो मुखर हो ही गये, बल्कि अन्य संगठनों में भी उबाल आ गया है। बीजेपी जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंप कर प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं। फिलहाल स्थानीय भाजपा नेता मुख्यमंत्री के समक्ष विषय उठाने का आश्वासन दे रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि अपने ही जनप्रतिनिधियों की बात का सम्मान मुख्यमंत्री मोहन यादव रख पाएंगे अथवा अपने क्षेत्र में ही डेयरी साइंस कॉलेज खोले जाने को प्राथमिकता देंगे।

डेंगू का खौफ : अफसर कह रहे ऑल इज वेल

जबलपुरवासी डेंगू के डंक से खौफजदा हैं लेकिन जिले का स्वास्थ्य अमला और नगर निगम अधिकारी- कर्मचारी बेफ्रिक नजर आ रहे हैं। इस मर्ज से पीडि़त लोगों के आंकड़ों में बाजीगरी भी बदस्तूर जारी है। सरकारी आंकड़ों में 1 जनवरी से अब तक लगभग तीन सौ मरीज दर्ज होना बताया जा रहा है, जबकि हकीकत में यह संख्या दो गुनी बताई जा रही है। जो सरकारी अस्पतालों में पहुंच रही पीडि़तों की भीड़ सहज संकेत दे रही है। आलम यह है कि वार्डों में बेड खाली नहीं मिल रहे हैं, वहीं निजी अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।

विस्मयकारी बात यह है कि निजी अस्पतालों में भर्ती हो रहे डेंगू पीडि़तों का डाटा जिले के स्वास्थ्य विभाग तक पहुंच ही नहीं रहा है। दरअसल सरकारी और निजी अस्पतालों में डेंगू की पुष्टि के लिए अलग- अलग टेस्ट किए जा रहे हैं। सरकारी चिकित्सालयों में डेंगू की जांच एलिसा टेस्ट के जरिये की जाती है जबकि निजी अस्पतालों में कार्ड टेस्ट किया जाता है, जो सरकारी अस्पतालों में मान्य नहीं है। लिहाजा इन अस्पतालों में इलाज कराने वाले मरीजों के आंकड़े सरकारी आंकड़ों में शामिल ही नहीं हो पा रहे। चिकित्सा सूत्रों के मुताबिक निकायों की अकर्मण्यता की वजह से डेंगू का प्रकोप बढ़ा, जो महज गाल बजाने वाली गतिविधियों से नियंत्रित नहीं हो सकता। दवा छिड़काव और सफाई व्यवस्था कागजों में ज्यादा दिखाई दे रही है, लेकिन इस व्यवस्था से जुड़े अफसर ऑल इज वेल का राग अलाप रहे हैं।

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