आधुनिक भारत के निर्माण के स्थाई स्तम्भ रतन के प्रेम से वंचित रहा विंध्य

राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख की जे आर डी टाटा से दोस्ती का
वादा निभाने तब बनाया था परम्परागत पद्धित से इलाज के लिए अब के आरोग्यधाम को
डॉ संजय पयासी
सतना:आजाद हिंदुस्तान को अपने पैरों पर खड़ा करने की शुरू हुई पहल में विंध्य बिरला के हिस्से में आया तो टाटा ने कभी इस ओर नही देखा. औद्योगिक विकास की अब चल रही अंधी प्रतिस्पर्धा में व्यवसायिक प्रतिबद्धता को हमेशा सबसे ऊपर रखने वाले इस घराने ने जो पहल की उससे आज भी लाखों घरों के चूल्हे जल रहे हैं. देश मे सरकारें आती-जाती रही,पर किसी ने विकास के इस स्थाई स्तम्भ को कभी हिलाने की कोशिश नही की.

कहने के लिए टाटा ने प्रदेश में कई स्थानों पर अपने प्रतिष्ठान स्थापित किए, लेकिन विंध्य में तमाम औद्योगिक सम्भावनाओ के बावजूद उन्होंने कभी कोई बड़ा काम शुरू नही किया.माना यह जाता है कि आधुनिक भारत के निर्माण की सृजन समिति में शामिल होने के कारण देश की जनता की भावी जरूरतों के आधार पर औद्योगिक सम्भावना तलाश कर तब के उद्योगपतियों ने जो नीति तय की उस पर पूरी उम्र कायम रहे.यही वजह हैं कि विंध्य में बिरला समूह के उद्योगों के कई प्रतिष्ठान स्थापित हुए लेकिन टाटा समूह का कोई प्रोजेक्ट नही आया.

अलबत्ता भारत रत्न राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख की जमशेदजी टाटा की दोस्ती के बदले रतन टाटा ने चित्रकूट में परम्परागत चिकित्सा पद्धति से इलाज के लिए एक बड़े प्रकल्प की रचना की.उनका इरादा एक ऐसे प्रतिष्ठान के निर्माण की थी जिसमें जितना गम्भीर से गम्भीर मर्ज के सफल इलाज की सम्भावना छिपी थी उतना ही भारत की विलुप्त हो चुकी परम्परागत चिकित्सा पद्धति जिसके जन्मदाता श्रुश्रुत और चरक थे उसे पुनर्स्थापित करना था.स्वर्गीय नानाजी की इस कल्पना में तब नया मोड़ आ गया जब इसके प्रबंधकीय दायित्व को रतन टाटा अपने हाथ मे लेना चाहते थे.कहा यह जाता है कि नानाजी इसे दीनदयाल शोध संस्थान के एक प्रकल्प के रूप में संचालित करना चाहते थे.

जिसके चलते प्रकल्प तैयार हो जाने के बाद रतन टाटा इसके शुभारंभ अवसर पर एक बार चित्रकूट प्रवास पर आए,इसके बाद फिर कभी उनका आना नही हुआ.विंध्य की मधुर स्मृतियों में इसके नाम पर कोई दूसरी घटना फिलहाल चर्चा में नहीं है.इतना जरूर है कि विंध्य के हजारों घरों के चूल्हे अभी भी टाटा के प्रतिष्ठानों पर मिले परिवार के सदस्यों के रोजगार से जल रहा हैं. इससे यह कहा जा सकता है कि विंध्य के सामाजिक आर्थिक विकास में उनका उतना ही योगदान रहा जितना यह स्थापित उद्योगो से जनता को मिला.

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