कम होता जा रहा नोटा का प्रयोग

विधानसभा की कई सीटो के परिणाम पलटने में भी रही नोटा की भूमिका

राधेश्याम शर्मा
बैरसिया:जब चुनाव में खड़े उम्मीदवार पसंद के नहीं हो तो आखिऱ किसे वोट दिया जाए, यह एक गम्भीर प्रश्न रहता है। मत देना एक मौलिक अधिकार है। मतदान प्रकिया पर सरकार एक बड़ी राशि व्यय करती है। कुछ देशों में मत न देने पर जुर्माने का भी प्रावधान है। हमारे देश मे 2013 में नोटा ( उपरोक्त में से कोई नही ) का प्रावधान लागू हुआ था। मत देना भी है और उसे कोई भी उम्मीदवार पसंद नही है तो वह यह विकल्प चुन सकता है। वोटिंग मशीन में नोटा का विकल्प बटन जोड़ा गया है। विगत कुछ वर्षों में कुछ सीटों पर इसने अपना असर भी दिखाया लेकिन धीरे धीरे मतदाता समझ गए कि यह सिर्फ मतदाताओं को उलझाने के लिए व्यवस्था है। इसलिए नोटा अब कमाल नहीं दिखा पा रहा है ।

2014 के चुनाव में 3 लाख 91 हजार 771 मत नोटा को प्राप्त हुए

2014 के लोकसभा चुनाव में नोटा के विकल्प की सुविधा मतदाताओं को उपलब्ध कराई थी। प्रदेश में 2014 के चुनाव में 3 लाख 91 हजार 771 मत नोटा को प्राप्त हुए थे। जो राज्य में कुल वैध मतों का 0.81 प्रतिशत था जबकि 2019 में 3 लाख 40 हजार 984 मत नोटा को मिले जो 0.66 प्रतिशत था। जाहिर है कि 2014 के मुकाबले नोटा का प्रयोग कम हुआ था। इसी तरह विधानसभा चुनाव 2013 में नोटा 1.90 , 2018 में 1. 42 , ओर 2023 के चुनाव में 0.98 प्रतिशत मत नोटा को दिए गए। इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि नोटा को मत देने वाले मतदाताओं का प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है।

जीत के अंतर से अधिक मत नोटा को मिले

पिछले साल विधानसभा के चुनाव में हरदा विधानसभा से भाजपा उम्मीदवार 870 मतों से पराजित हो गए। जबकि नोटा में 2357 मत डाले गए थे। इसी तरह टिमरनी में भाजपा उम्मीदवार 950 मतों से हारे है। जहा नोटा को 2561 मत प्राप्त हुए। जाहिर है कि नोटा ने चुनाव परिणाम को पलट दिया था। 2019 में सबसे कम नोटा का प्रयोग करने वाले संसदीय क्षेत्र मुरैना , सतना , रीवा , इंदौर , ओर बालाघाट थे। इस तरह 2014 में नोटा का कम प्रयोग में ग्वालियर , मुरैना , भोपाल , इंदौर ओर भिंड थे। 2014 एव 2019 के लोकसभा चुनाव में मुरैना ओर इंदौर में नोटा का प्रयोग कम हुआ।

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