नक्सलवाद की चुनौतियां

हाल ही में बालाघाट और छत्तीसगढ़ में करीब 13 नक्सलियों को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया है. इनमें महिला नक्सली भी शामिल हैं. निश्चित रूप से नक्सलवाद से सख्ती से निपटना चाहिए. इस संबंध में सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाई पर सवाल नहीं उठाया जा सकता लेकिन नक्सलवाद कानून और व्यवस्था से ज्यादा सामाजिक समस्या है. इसके मूल में सामाजिक विषमता छिपी हुई है. हालांकि यह भी सही है कि पिछले दो-तीन दशकों में नक्सलवादी दिशाहीन होकर केवल आतंकवाद का सहारा लेना चाहते हैं लेकिन फिर भी इस समस्या को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत है . इस संबंध में तेलंगाना एक उदाहरण बन सकता है. पिछले दिनों तेलंगाना सरकार में एक ऐसी कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया जिनका अतीत नक्सलवाद से जुड़ा रहा है. दरअसल ,तेलंगाना सरकार में दानसारी अनसूया उर्फ सीताक्का के मंत्री बनने के बड़े मायने हैं. यह मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण ठोस और प्रेरक संदेश है देश के उन व्यक्तियों के लिए जो किसी न किसी कारण से रास्ता भटक कर हिंसा के दलदल में फंसे हुए हैं.उन्हें तंत्र अपना दुश्मन लगता है और दुश्मनी निकालने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार लगते हैं.इस रास्ते से खुशी और संपन्नता कभी नहीं आ सकती है, यह जानते हुए भी वे विद्रोह की आग में झुलसते रहते हैं.

अनसूया हिंसा की राह छोडऩे के इच्छुक नक्सलियों के लिए उम्मीद की एक किरण हैं. एक दुर्दांत नक्सली का समाज में लौट आना, पढ़ाई में मशगूल हो जाना, पहले एलएलबी और फिर पीएचडी की डिग्री हासिल करना तथा अब विधायक निर्वाचित होकर राज्य के मंत्री पद तक पहुंच जाना वाकई सभी को चकित करता है. अनसूया की यह यात्रा फिल्मी कथा-सी बहुत ही रोचक लगती है.इस उदाहरण से नक्सलियों और अन्य राह भटके समूहों को हिंसा का रास्ता छोडऩा असंभव नहीं लगेगा. उन्हें यह डर नहीं होना चाहिए कि यदि वे हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे तब भी उन्हें सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिलेगी या वे घृणा, नफरत और उपेक्षा के शिकार होंगे. जनता का दिल भी बहुत विशाल है. वह प्यार से मिलने वाले, सुबह के भूले और शाम को लौटने वाले को गले लगाने के लिए तैयार ही रहती है.फूलन देवी, मलखान सिंह और कई अन्य जब हिंसा का रास्ता छोडक़र समाज में लौटे, तो उनको मुख्यधारा में शामिल कर लिया गया. इनमें से अधिकांश समाज में न केवल सामान्य जीवन जी रहे हैं, बल्कि सफलता के मार्ग पर भी आगे बढ़ रहे हैं.अनसूया के उदाहरण के बाद तो अब शंका की कोई गुंजाइश ही नहीं रहेगी. उनकी स्वीकार्यता सामाजिक और राजनीतिक सभी मोर्चों पर बहुत ही जोर-शोर से हुई है. जब अनसूया जैसी शख्सियत इसके लिए आगे आती हैं, पश्चाताप प्रदर्शित करते हुए पुन: समाज का हिस्सा बनती हैं और फिर असाध्य मेहनत के बल पर ऊंचा मुकाम हासिल करती हैं, तो प्रेरणा सर्वोच्च स्तर पर होती है.यह प्रेरणा आने वाले समय को इस दृष्टि से और बेहतर बनाएगी कि हम बड़ी संख्या में राह भटके हुए लोगों को अपने बीच साधारण व सामान्य स्तर पर देख पाएंगे.साफ है कि नक्सली समस्या के समाधान के लिए ज्यादा से ज्यादा नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का मौका दिया जाना चाहिए.बंदूक पर भरोसा करने वाले नक्सलियों को भी समझना चाहिए कि समाज की मुख्यधारा में लौटकर वे अपने समुदाय के लिए बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं. इससे न केवल उनके क्षेत्र का बल्कि पूरे देश का विकास होगा. दरअसल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों को भी तेलंगाना की तरह नक्सलियों के सामाजिक पुनर्वास के गंभीर प्रयास करने चाहिए. हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि सुरक्षा बालों ने समय-समय पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. नक्सलवाद की इस चुनौती से निपटने के लिए दोनों तरह के प्रयास जरूरी हैं.

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