बजट में 70 ई-बसों की सौगात, याद आया सिटी बसों का जमाना

ग्वालियर चंबल डायरी

   हरीश दुबे

ग्वालियरवासियों को अभी तक याद है कि पेंतीस-चालीस बरस पहले तक शहर के तीनों उपनगरों ग्वालियर, लश्कर और मुरार की सड़कों पर लंबी सिटी बसें दौड़ती थीं, शहर की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का यह सिटी बसें बड़ा आधार थीं लेकिन रोडवेज ठप होने के बाद ये सिटी बसें भी बंद हो गईं। इसके बाद सड़कों पर पहले टेम्पो, फिर विक्रम का कब्जा हो गया, अब इसमें दस हजार से ज्यादा ई-रिक्शा भी जुड़ गए हैं लेकिन आज विधानसभा में पेश मोहन सरकार का पहला बजट ग्वालियर की नगरीय परिवहन व्यवस्था के लिए सौगात लेकर आया है। शहर की सड़कों पर अब 70 लग्जरी ई-बसें दौड़ेंगी। न डीजल पेट्रोल का खर्चा और न बैटरी का। इलेक्ट्रिक सिस्टम से चलेंगी ये अनूठी बसें। किराए में भी बीस से तीस फीसदी की कमी आएगी। हालांकि ग्वालियर में इलेक्ट्रिक बसें चलाने के लिए पिछले कई महीनों से काम चल रहा था और कैबिनेट ने भी इस प्लान को मंजूरी दे ही दी थी। अब बजट में भी प्रावधान कर दिए जाने से यह तय हो गया है कि ग्वालियर की सड़कों पर ई-बसें दौड़ने में अब ज्यादा देर नहीं है।

 विधानसभा से छुट्टी लेकर चुनावी जमावट में जुटे रावत

विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले विजयपुर के पांचवी बार के विधायक रामनिवास रावत सदन से नदारत हैं और अपने क्षेत्र में डटे हैं। हालांकि शिवराज सिंह के इस्तीफे से खाली हुई सदन में सत्ता पक्ष की फ्रंट सीट रावत को दी जा चुकी है और उन्हें विधानसभा की कार्यमंत्रणा समिति से हटाकर भविष्य के लिए उनकी राह बनाई जा रही है लेकिन रावत सदन में न जाकर अपने क्षेत्र में ही रहकर उपचुनाव के लिए स्थिति मजबूत करने में व्यस्त हैं। श्योपुर के सात लोगों की करौली में सड़क हादसे में मौत के बाद वे तत्काल मृतको के गांव पहुंचे तो आज कराहल तहसील में देखे गए। लगे हाथ, श्योपुर भाजपा के जिला महामंत्री अरविंद जादौन के साथ भोपाल में सीएम से मिलकर विजयपुर की समस्याओं का मांगपत्र भी दे आए हैं। अपने पिता के नाम पर बने डिग्री कॉलेज में सात जुलाई से भागवत कथा भी बिठा रहे हैं। इस पूरी कवायद को चुनावी जमावट से जोड़कर देखा जा रहा है। पता चला है कि उन्होंने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर इस सत्र से बाकायदा छुट्टी ली है। खबर यह भी है कि मोहन मंत्रिमंडल के आगामी विस्तार में उन्हें मंत्री बनाया जाना लगभग तय हो चुका है।

 शहर सदर की कुर्सी कब्जाने नए-पुरानों की दौड़

नीट घोटाले को लेकर कांग्रेस ने ग्वालियर में कलेक्ट्रेट के घेराव का कॉल किया लेकिन वहाँ भीड़ नहीं जुट सकी। नेता तो इफरात में थे लेकिन कार्यकर्ता बेहद कम। इसे ग्वालियर कांग्रेस में संभावित नेतृत्व परिवर्तन के लिए पार्टी में स्थानीय स्तर पर चल रही उठापटक से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि मौजूदा जिलाध्यक्ष देवेन्द्र शर्मा फिलहाल कुर्सी छोड़ने के मूड में दिखाई नहीं दे रहे हैं लेकिन पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में आए प्रतिकूल नतीजों का हवाला देते हुए शहर के कई नए-पुराने नेताओं ने शहर सदर की कुर्सी पर नजरें गड़ा दी हैं। हार का ठीकरा शहर सदर पर फोड़ा जा रहा है लेकिन उनके पास अपने जवाबी तर्क हैं। प्रदेश नेतृत्व की ओर से उन्हें फिलहाल अभयदान है। महाराज सिंह पटेल से लेकर सुनील शर्मा तक जिलाध्यक्षी की दौड़ में हैं। अनूप तिवारी और संजय सिंह राठौड़ जैसे युवा नेता तो खुलकर इस कुर्सी को संभालने की ख्वाहिश जता रहे हैं।

 यहां सत्तासुख के लिए चल रही सरगर्मी

अमरवाड़ा उपचुनाव के बाद प्रदेश के निगम बोर्डों, प्राधिकरणों में सत्तापक्ष के कद्दावर नेताओं की ताजपोशी किए जाने की खबर यदि सच है तो जयभान सिंह पवैया, मुन्नालाल गोयल, रमेश अग्रवाल, अशोक शर्मा, इमरती देवी, राकेश मावई, रणवीर जाटव जैसे नेताओं को सत्तासुख का मौका मिल सकता है। पवैया को छोड़ दें तो इनमें से बाकी नेता वे हैं जो महाराज के साथ ही भाजपा में आए थे। ग्वालियर की सांसदी संभाल चुके शेजवलकर का टिकट इस बार कट गया था, लिहाजा उनके पुनर्वास की भी अटकलें हैं। सिंधिया के लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद खाली हुई राज्यसभा की सीट के लिए केपी यादव और नरोत्तम मिश्रा के बीच स्पर्धा चल रही है तो पवैया का नाम भी उछला है।

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